फंस ही गए रामदेव व बालकृष्ण

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भ्रामक और आपत्तिजनक विज्ञापन मामले में अदालत के आदेशों की अवमानना किए जाने का मामला अब स्वामी रामदेव और बालकृष्ण पर भारी पड़ता दिख रहा है। उनके द्वारा दूसरी बार भी दिए गए बिना शर्त माफी मांगने वाले हलफनामे पर कड़ी आपत्ति जताते हुए खारिज कर दिया गया है। सत्ता संस्थान और सत्ता संरक्षण प्राप्त लोगों द्वारा अदालत के आदेशों को ठेंगा दिखाने की भूल करने वालों को अब न्यायपालिका का अस्तित्व समझ आना ही चाहिए। कल न्यायालय की उस पीठ द्वारा जो इस मामले की सुनवाई कर रही है जिस तरह की फटकार लगाई गयी है और साफ—साफ कहा है कि अगर गलती की है तो परिणाम भुगतने के लिए भी तैयार हो जाइए, से साफ हो गया है कि न्यायपालिका अब किसी भी कीमत पर रामदेव और बालकृष्ण को बख्शने को तैयार नहीं है न्यायपालिका इस मामले में आरोपियों को कड़ी सजा देकर एक ऐसा उदाहरण पेश करना चाहती है कि शासन प्रशासन में बैठे लोग और सत्ता का संरक्षण पाने वाले खुद को न्यायपालिका से भी ऊपर समझने की भूल न करें। अदालत ने सिर्फ इस मामले में रामदेव और बालकृष्ण को ही नहीं बल्कि राज्य के लाइसेंसिंग प्राधिकारी और आयुर्वेद एवं यूनानी अधिकारी पर भी कार्यवाही की बात करते हुए कहा है कि क्यों न उन्हें भी निलंबित कर दिया जाए जिन्होंने केंद्र के 20—20 आदेश जिसमें विज्ञापनों को रोकने को कहा था, गंभीरता से नहीं लिया। अब 16 अप्रैल को अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाती है यह तो तभी पता चलेगा लेकिन अदालत के सख्त रूख से यह साफ हो चुका है कि उन्हें माफ नहीं किया जा सकता है। यह फैसला इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मामला जनमानस के स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा से जुड़ा है जो नकली दवाएं बना कर जनजीवन के साथ खिलवाड़ करते हैं। उसके लिए यह फैसला उन्हें सतर्क करेगा। हमने देखा था कि पूरा देश और इस देश का आम और गरीब आदमी जीवन और मौत से कोरोना काल में जूझ रहा था तमाम दवा निर्माता नई—नई दवाई बाजार में लाकर और शर्तिया इलाज की गारंटी देकर जनता को न सिर्फ लूट रहे थे बल्कि जीवन रक्षक दवाओं का हाल तो यह था कि वह मनवाने दामों पर बेची जा रही थी। स्वामी राम देव और बालकृष्ण आज जिस मुसीबत में फंसे हुए हैं उसके पीछे अहम कारण राज्य व केंद्र की सरकारों द्वारा दिए जाने वाला संरक्षण ही प्रमुख कारण है लेकिन अब जब रामदेव और बालकृष्ण पर कानूनी शिकंजा कसा जा रहा है तो कोई भी उन्हें बचाने के लिए सामने नहीं आ सकता है। क्योंकिं उनका किसी तरह का हस्तक्षेप उनकी भी किरकिरी कर सकता है। वैसे भी जब सत्ता पर काबिज लोग जो इन दिनों न्यायपालिका के सख्त रूख के कारण खुद भी मुसीबत की मार झेल रहे हैं वह और कोई भी पंगा नहीं लेना चाहेंगे। स्वामी रामदेव और बालकृष्ण धनबल और सत्ता संरक्षण के जरिये भले ही कुछ भी कर गुजर सकते हो लेकिन न्यायपालिका के सामने अब हाथ जोड़कर खड़ा होना और माफीनामे का दिखावा करके भी वह स्वयं की रक्षा करने में असमर्थ दिखाई दे रहे हैं। देखना होगा कि अब जब इस मामले की सुनवाई 16 अप्रैल को होगी अदालत क्या सजा सुनाती है हां एक बात तय है कि इसकी अनुगूंज बहुत दूर तक जरूर जाएगी।

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