उत्तराखंड की सभी पांच सीटों के लिए बीते 19 अप्रैल को पहले ही चरण में मतदान संपन्न हो चुका है। चुनाव के लिए प्रत्याशियों के नामों की घोषणा से पहले जब केंद्रीय नेतृत्व द्वारा अबकी बार 400 पार का नारा लगाया जा रहा था उस समय उत्तराखंड भाजपा के नेताओं का उत्साह भी सातवें आसमान पर था हर कोई यह मान रहा था कि भाजपा का टिकट भले ही किसी को भी मिले लेकिन उसके जीतकर संसद पहुंचने की गारंटी है। हर किसी को मोदी के चेहरे और उनकी गारंटी में अपनी जीत दिखाई दे रही थी। लेकिन प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बाद से भाजपा के आंतरिक हालात बदलने शुरू हुए और यह हालत किस हद तक बदले इसकी बानगी अब चुनाव निपटने के बाद पूरी तरह सामने आ चुकी है। इस चुनाव में हरिद्वार व पौड़ी सीट से भाजपा द्वारा अपने सिटिंग सांसदों के टिकट काटकर ऐसे दो प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा जो पहली बार सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। भले ही भाजपा अपने आप को एक अनुशासित पार्टी होने का दावा करती रहे लेकिन पार्टी के अंदर आंतरिक अनुशासन की क्या स्थिति है यह बात किसी से भी छुपी नहीं है। चुनाव में भाजपा की भीतरघात का इतिहास सभी जानते हैं। जिसे मौका मिलता है वह अनुशासित कार्यकर्ता बन जाता है और जिसे मौका छीन लिया जाता है वही अनुशासन हीनता पर उतर आता है भले ही इन नेताओं की सामने आकर कुछ भी कहने की हिम्मत हो न हो लेकिन पीठ पीछे वह कुछ भी कहने और करने से नहीं चूकते हैं। चुनाव निपट जाने के बाद अब इन नेताओं की आपसी कहा सुनी और अंतर विरोध सामने आ चुके हैं और वह इतने बड़े हैं कि इन नेताओं को नोटिस जारी कर उनसे जवाब तलब करने के साथ ही उन्हें पार्टी मुख्यालय बुलाकर महेंद्र भटृ ने स्पष्ट हृदय दी है कि जो कुछ कहना है पार्टी फोरम में ही कहे किसी को भी बाहर बयान बाजी करने का अधिकार नहीं है। भाजपा नेताओं के कुछ ऐसे वीडियो भी वायरल हुए हैं जो अपनी पार्टी के खिलाफ बोलते दिख रहे हैं। राज्य में हुए कम मतदान 57.22 रहने से भाजपा नेताओं की धड़कनें अलग बढ़ी हुई है तथा उनके सर्वे भी इस बात को बता रहे हैं कि 2014 व 2019 की तरह उन्हें इस बार किसी भी सीट पर आसान जीत नहीं मिलने जा रही है। बीते दो चुनावों में सभी पांच सीटों पर जीत हासिल करने वाली भाजपा इस बार दो से तीन तक सीटें हार भी सकती है। उसके ऊपर से अब पार्टी के नेताओं के अंदर मचा घमासान भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के लिए एक नई मुसीबत खड़ी किए हुए हैं। अगर भाजपा का प्रदर्शन इस चुनाव में अपेक्षा अनुरूप नहीं रह पाता है तो उसके बाद यह संकट और भी विकराल रूप ले सकता है। वहीं इसके कारण पार्टी में हर स्तर पर बड़ा बदलाव भी संभव ही है। भावी भविष्य में क्या होता है इसके लिए अभी 4 जून तक का इंतजार करना पड़ेगा। दूसरे दलों से भाजपा में गए नेताओं के लिए आने वाला समय कोई शुभ संकेत नहीं है।