क्या यही है अमृत काल?

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आजादी का यह कैसा अमृत काल है जहां देश के नेताओं द्वारा संविधान और लोकतंत्र का खुल्लम—खुल्ला चीर हरण किया जा रहा है। भले ही इस देश के लोगों ने आपातकाल जैसी स्थितियों को देखा हो लेकिन लोकतंत्र और संवैधानिक व्यवस्थाओं की जिस तरह से वर्तमान दौर में धज्जियां देश के नेता और राजनीतिक दल उड़ा रहे हैं शायद वैसा इससे पूर्व कभी नहीं देखा गया है। आज देश के नेता सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी करने और किसी भी हद तक जाने के लिए जिस तरह से आमादा दिख रहे हैं वह स्थितियां वाकई डराने वाली है। अभी हमने चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में सत्ता के चीर हरण की जो एक प्रत्यक्ष घटना देखी थी वह कितनी गंभीर थी उसका अंदाजा आप सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी से लगा सकते हैं जिसमें उस घटना को लोकतंत्र की हत्या करार दिया गया था। इस क्रम में अगर केंद्र सरकार द्वारा लाए गए इलेक्टोरल बांड की बात की जाए तो सुप्रीम कोर्ट उसे असंवैधानिक बताकर इस कानून या व्यवस्था को रद्द कर चुका है। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि सरकार ने अपनी शक्तियों और अधिकारों का इस्तेमाल गलत कानून बनाने के लिए किया गया इस गलत कानून के जरिए गलत और असंवैधानिक तरीके से सत्ताधारी पार्टी ने 8 से 9000 करोड़ की कमाई की। वह भी देश की ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाओं का गलत तरीके से इस्तेमाल करके। अभी इसका पूरा सच सही मायने में सामने नहीं आया है वरना इसे देश के इतिहास में सबसे बड़ा आर्थिक घोटाला जरूर बताया जा रहा है। अभी हाल ही में हुई अगर उन दो घटनाओं पर गौर किया जाए जो गुजरात के सूरत और मध्य प्रदेश के इंदौर में सामने आई है जहां कांग्रेस प्रत्याशी नामांकन वापसी के अंतिम दिन अपना नाम वापस लेते हैं और भाजपा की गोद में जाकर बैठते हैं। सूरत में बिना चुनाव लड़े ही भाजपा प्रत्याशी को सांसद बनने का मौका मिल जाता है। क्या यह संवैधानिक व्यवस्था है। जिसमें कोई राजनीतिक दल देश की जनता से लोकतंत्र और संविधान प्रदत्त सबसे महत्वपूर्ण वोट के अधिकार को ही छीन ले। संविधान और लोकतंत्र के साथ इससे बड़ा मजाक भला और क्या हो सकता है जहां नागरिकों को वोट देने का अधिकार न हो उसे भला कौन लोकतंत्र कह सकता है। नेताओं की खरीद फरोख्त व डरा धमका कर चुनी हुई सरकारों को गिराने और सत्ता हड़पने का खेल तो देश में बहुत पहले से चल रहा था अब मतदान का अधिकार छीन कर संसद तक पहुंचने का जो तरीका देश के नेताओं व राजनीतिक दलों ने तलाश कर लिया है वह लोकतंत्र पर सीधा कुठाराघात है। इसी कड़ी में अब जरा बात सांसद व नेताओं के चरित्र की भी कर ली जाए। एचडी देवगौड़ा देश के पूर्व प्रधान मंत्री और उनका पौत्र प्रज्वल रेवन्ना जो कर्नाटक के हासन से एनडीए के प्रत्याशी हैं। एक पेन ड्राइव के जरिए उनके सैकड़ो सेक्स स्कैंडल का सामने आना और उनका विदेश भाग जाना सरकार की बेटी बचाओ व बेटी पढ़ाओ के नारे की कलई खोलने के लिए काफी है। किस लोकतंत्र और संविधान तथा अमृत काल की बात करते हैं हम। जिसका सच इतना घिनौना और शर्मसार करने वाला हो उस पर सिर्फ देश के नेता ही गर्व कर सकते हैं।

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