राजनीति के बिगड़े बोल

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बीते कल निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामलों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को नोटिस जारी किए गए हैं। इस संदर्भ में कुछ भी लिखने से पहले उस निर्वाचन आयोग के बारे में अभी देश के सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई दो टिप्पणियों पर गौर करना जरूरी है। पहली टिप्पणी निर्वाचन आयुक्त को लेकर की गई थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर पीएमओ ही आयुक्तों की नियुक्तियां करेगा तो क्या कोई भी आयुक्त पीएम से कोई सवाल कर सकेगा? सुप्रीम कोर्ट द्वारा दूसरी टिप्पणी ईवीएम में गड़बड़ी पर सुनवाई के दौरान की गई थी जिसमें कहा गया था कि वह निर्वाचन आयोग के काम में हस्तक्षेप कर उसकी महत्ता को कम नहीं कर सकता है। कल निर्वाचन आयोग द्वारा जो नोटिस पीएम मोदी और राहुल गांधी को जारी किए गए हैं उसके संदर्भ में भी दो बातें काबिले गौर है पहली बात है देश के संवैधानिक इतिहास में किसी प्रधानमंत्री को पहली बार नोटिस जारी किया जाना तथा दूसरी बात है कि इन नोटिसों को सीधे आरोपित पीएम मोदी व राहुल गांधी के नाम से जारी न कर भाजपा व कांग्रेस पार्टी के अध्यक्षों के नाम से जारी किया जाना, यह भी पहली बार देखा गया है। अब तक यह नोटिस उस नेता के नाम से जारी किए जाते रहे हैं जिनके खिलाफ शिकायतें मिलती थी। भले ही चुनाव आयोग के इस कार्य व्यवहार के बारे में कुछ भी सोचे या समझे लेकिन एक बात साफ है कि आयोग ने इन शिकायतों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जितनी गंभीरता से लिया जाना जरूरी था। यह आयोग की कार्यवाही महज औपचारिकता पूरी करने भर तक ही प्रतीत होती है। आयोग की इस तरह की कार्यवाही से सुप्रीम कोर्ट की वह टिप्पणी जिसमें पीएम द्वारा नियुक्त आयुक्त (अधिकारी) भला पीएम से क्या कुछ सवाल पूछ पाएगा, के सच की झलक ही मिलती है जहां तक उनके खिलाफ इससे आगे की किसी कार्रवाई की बात है उसकी तो चुनाव आयोग से उम्मीद कतई भी नहीं की जा सकती है यही वजह है कि प्रधानमंत्री के जिस तरह के नफरती और भड़काऊ तथा धार्मिक भाषणों को लेकर कांग्रेस ने शिकायतें की थी वैसे ही भाषण आयोग के नोटिस आने के बाद भी जारी है। दर असल चुनाव आयोग ने मोदी और राहुल दोनों के खिलाफ एक ही तरीके के नोटिस जारी कर जिसमें उनका नाम तक नहीं है मामले को रफा दफा करने की कोशिश की है। इन नोटिसों के आने के बाद आयोग ने जेपी नड्डा जो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है उन्हें भी मुसीबत में डाल दिया है और कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे को भी। क्योंकि अब उन्हें ही प्रधानमंत्री व राहुल को निर्देश करना है कि वह उस तरह के भाषण न दे जिन्हें लेकर फिर कोई बवाल खड़ा हो। एक बारगी तो खड़गे भले ही राहुल गांधी को इस नोटिस के बारे में कठोर दिशा निर्देश दे पाए लेकिन भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की क्या इतनी हिम्मत और मजाल हो सकती है कि वह प्रधानमंत्री मोदी को यह हिदायत दे सके कि उन्हें जनसभा में कैसे भाषण करना है भाजपा व कांग्रेस भले ही चुनाव आयोग को इसका कोई भी जवाब दे लेकिन नरेंद्र मोदी जो देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन है जो सर्वाेच्च गरिमा प्रधान पद है तथा राहुल गांधी जिन्हे अपनी शिक्षा दीक्षा पर गुमान है उन्हें देशवासियों के सामने उच्च आदर्श प्रस्तुत करने की जरूरत है। अभद्र भाषा या सांप्रदायिक नफरती भाषणों से उनकी कोई शान बढ़ नहीं रही बल्कि उसे बटृा ही लग रहा है जो देश व समाज के लिए शर्मिंदगी की बात है।

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