संसद में घुसपैठ, गंभीर मुद्दा

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बीते कल एक बार फिर देश की संसद पर हुए हमले ने देश ही नहीं पूरे विश्व को चौंका दिया है। सवाल इस बात का नहीं है कि हमलावर देश के लोग हैं या विदेशी हैं और सवाल यह भी नहीं है कि इस हमले में क्या कुछ नुकसान हुआ है। सवाल यह है कि एक बार जो देश अपनी संसद पर हुए बड़े आतंकी हमले की त्रासदी से गुजर चुका हो उस देश की संसद की सुरक्षा को लेकर हमारी सरकार और सुरक्षा एजेंसियां कितनी सतर्क और चुस्त—दुरस्त हो पाई हैं? भले ही सत्ता में बैठे नेता इस हमले को मामूली घटना बताकर और सुरक्षा एजेंसियां हमलावरों को पकड़कर अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही हों और कुछ पत्रकार तथा टीवी चैनल इसे राजनीति से प्रेरित विरोध प्रदर्शन बताकर इस बड़ी घटना को छोटी सी भूल या सुरक्षा चूक बताकर हल्की बनाने का प्रयास कर रही हों लेकिन सच यह है कि यह सरकार और हमारी सुरक्षा एजेंसियों की इतनी बड़ी नाकामी है जिसके कारण देश और लोकतंत्र की छवि को भारी नुकसान हुआ है। पूरे विश्व के सामने हमारी सुरक्षा एक मजाक बनकर रह गई है। कल्पना कीजिए कि जब 2001 में आतंकवादी संसद के अंदर प्रवेश भी नहीं कर सके तब क्या हुआ था हमने अपने 9 सुरक्षा कर्मियों का बलिदान कर दिया था। कल जब दो लोग अनाधिकृत रूप से लोकसभा सदन चले गए और उन्होंने संसद को धुआं धुआं कर दिया अगर यह आतंकवादी होते तो क्या होता? इसलिए इसे सुरक्षा में चूक बता कर नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। जिस संसद पर एक बार इतना बड़ा आतंकी हमला हो चुका उस संसद में अगर हमले की बरसी वाले दिन इतनी बड़ी घुसपैठ हो जाए वह भी स्मोक क्रेकर के साथ तो इसका सीधा अर्थ है कि कोई कुछ भी कर सकता है। इस धुएं की जगह कोई जहरीली गैस भी हो सकती थी। या कोई खतरनाक विस्फोटक भी हो सकता था। इसे गनीमत ही समझिए जो कुछ भी नहीं हुआ वरना इसका नतीजा इतना घातक भी हो सकता था जो आज तक किसी देश की संसद में नहीं हुआ है। इस मामले की सबसे अहम बात यह है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियों को 13 दिसंबर को इस तरह की घटना का इनपुट 15 दिन पूर्व ही मिल गया था तब भी सरकार और सुरक्षा एजेंसियंा इसे नहीं रोक सकी। एक तरफ हम अपनी ताकत का ढिंढोरा पूरे विश्व में पिटते फिर रहे हैं। यह आज का नया भारत है जो घर में घुसकर मारता है। वही हमारी सुरक्षा व्यवस्था का हाल यह है कि हम अपनी संसद तक की सुरक्षा करने में नाकाम साबित हो रहे हैं। भारत ने गणतंत्र दिवस पर आयोजित होने वाले समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को आमंत्रित किया है। हमारी इस सुरक्षा व्यवस्था को देखकर अब जो बाइडन और अमेरिकी भी सोच रहे होगें कि उन्हें भारत जाना चाहिए या नहीं। निश्चित तौर पर इस घटना ने देश को तो झकझोर कर ही रख दिया है। इसके साथ—साथ पूरे विश्व में भारत की साख को खराब कर दिया है। इस घटनाक्रम से मिली जानकारी के अनुसार संसद में घुसपैठ करने वाले दो आरोपियों को भाजपा सांसद प्रताप सिंह की संस्तुति पर ही पास जारी किए गए। इस पूरे घटनाक्रम का क्या सच है? संसद में इस तरह घुसपैठ और आतंक फैलाने के पीछे उनका क्या उद्देश्य था इसका पूरा सच जांच के बाद ही सामने आएगा। लेकिन छह राज्यों के 6 अलग—अलग युवा अगर मिलकर इस तरह से सुसंगठित ढंग से किसी घटना को अंजाम देते हैं तो वह बिना किसी मकसद के नहीं हो सकता है। यह घटना देश की सरकार और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक ऐसा सबक है जिसे गांठ बांधने की जरूरत है। यह भी स्वाभाविक है कि इस घटना से विपक्ष को एक और राजनीतिक मुद्दा हाथ लग गया है। लेकिन भाजपा को भी चाहिए कि वह इस अति संवेदनशील घटना को लेकर विपक्ष को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश न करें। पक्ष विपक्ष दोनों को ही इस मुद्दे पर राजनीति कतई भी नहीं करनी चाहिए। मीडिया द्वारा इस घटना की लिंक अपने—अपने तरीके और सुविधाओं के हिसाब से जोडे तोडे जा रहे हैं लेकिन इस पूरे घटनाक्रम की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए तथा संसद में आगे इस तरह की घटनाओं की पुर्नवृत्ति न हो सके यह भी सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को सुनिश्चित करना होगा।

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