देहरादून। देवी मां के उपासकों का मानना है कि सारी सृष्टि ऊर्जा के मूल स्रोत— आदिपराशक्ति से उत्पन्न हुई है। दुर्गा, लक्ष्मी तथा सरस्वती की त्रिमूर्ति और ब्रह्मा, विष्णु, तथा शिव की मर्दाना त्रिमूर्ति इस एक सर्वाेच्च शक्ति, आदिराशक्ति के पहलू हैं।
महालक्ष्मी के रूप में, सर्वाेच्च सृष्टिकर्ता जीविका प्रदान करने, समस्त सृष्टि के निरंतर अस्तित्व के लिए आवश्यक सभी चीजों की आपूर्ति करने के लिए जिम्मेदार है। महालक्ष्मी न केवल धन, बल्कि हमारे जीवन के सभी पहलुओं में धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी हैं। इसलिए, वह स्वास्थ्य और खुशी, दिव्यता, वैराग्य और ज्ञान की देवी भी हैं, जो जीवन के हर चरण में हम जो भी चाहते हैं वह हमें प्रदान करती हैं।
यह बात ज्योतिष्पीठ बद्रिकाश्रम व्यासपीठालंकृत आचार्य शिवप्रसाद ममगांई ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री व पार्षद उर्मिला थापा व देवी भक्तों के द्वारा किशनपुर राजपुर अर्धनारीश्वर मन्दिर प्राँगण में आयोजित श्रीमद्देवीभागवत कथा आठवें दिन की कथा में कहे। उन्होंने कहा कि शुंभ निशुंभ से पराजित होकर गंगा के तट पर देवताओं ने जिस देवी की प्रार्थना की थी वह महागौरी ही थीं। देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ था जिसने शुंभ निशुंभ के आतंक से देवताओं को मुत्तिQ दिलाई थी। देवी गौरी, भगवान शिव की अर्धांगिनी हैं और इस कारण वे शिवा और शाम्भवी नाम से भी पूजी जाती हैं।
मां को गौर वर्ण कैसे मिला इससे जुड़ी एक रोचक कथा है। इसमें बताया गया है कि भगवान भोलेनाथ को पति रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या की जिससे इनका शरीर काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने इन्हें स्वीकार किया और गंगा जल की धार जैसे ही देवी पर पड़ी वे विघुत के समान अत्यंत कांतिमान और गौर वर्ण की हो गईं , तभी से उन्हें मां महागौरी नाम भी मिला। नवरात्रि के आठवें दिन को महाअष्टमी भी कहा जाता है। मां अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। मां महागौरी इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है और असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। पुराणों में महागौरी की महिमा का काफी वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार ये मनुष्य की वृत्तियों को सत्घ् की ओर प्रेरित करके असत्य का विनाश करती हैं।
देवी पार्वती रूप में महागौरी ने भगवान शिव को पति—रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ द्वारा कहे गए किसी वचन से पार्वतीजी का मन का आहत होता है और पार्वतीजी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वर्षों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आतीं तो पार्वतीजी को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुंचते हैं। वहां पहुंचकर वे पार्वतीजी को देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। पार्वतीजी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत और कुंद के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौरवर्ण का वरदान देते
इस अवसर पर मुख्य रूप से श्रीमती उर्मिला ढौंडियाल थापा रजेर्न्द् बंगवाल अशोक थापा पूजा थापा अथर्व अनिता बंगवाल कुसुम नेगी भूपेंद्र नेगी चम्पा मदवाल निर्मला गुसाई ममता गुसाई बीना माला बंगवाल सुनीता थापा सुमन डॉक्टर विनीता आचर्य महेश भटृ आचार्य संदीप बहुगुणा आचार्य बाल मुकुंद ममगई आचार्य अरुन् थपलियाल अनिल चमोली आदि भक्तगण भारी संख्या मे उपस्थित थे ।