गरीब व किसानों के मुद्दे

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इस लोकसभा चुनाव में देश के लोग किन मुद्दों को प्राथमिकता देते हैं यह अलग बात है वोट डालते वक्त उनके दिलों दिमाग में क्या चल रहा होगा और वह कौन सा बटन दबाएंगे यह अलग बात है लेकिन महंगाई और बेरोजगारी तथा देश में बढ़ता भ्रष्टाचार ही सबसे अहम मुद्दे हैं। इस बात की तस्दीक अब तक किए गए तमाम सर्वे कर चुके हैं। देश का गरीब तबका सबसे ज्यादा परेशान महंगाई के कारण है 35 फीसदी आबादी को अपनी घरेलू जरूरतों को भी पूरा करने में भारी मुश्किलें हो रही है जबकि 36 फीसदी लोग मानते हैं कि किसी तरह काम तो चल जाता है मगर वह एक रूपये की भी बचत नहीं कर पा रहे हैं। सिर्फ 22 फीसदी लोग ही ऐसे हैं जो अपनी सामान्य जरूरतों को पूरा करने के साथ थोड़ा बहुत बचत भी कर पा रहे हैं। सर्वे के आंकड़ों से यह साफ होता है कि पिछले 5 सालों में गरीब और अधिक गरीब हुए हैं तथा विकास कुछ चंद लोगों का ही हुआ है। देश के 66 फीसदी युवाओं का कहना है कि उनके पास कोई काम नहीं है और काम तलाशना उनके लिए सबसे मुश्किल चुनौती बन चुका है। गरीब लोगों के अच्छे दिन का सपना आज भी सपना ही बना हुआ है सिर्फ 45 फीसदी लोग ही फील गुड के दायरे में है। देश के 60 फीसदी लोगों का मानना है कि पिछले 5 सालों में भ्रष्टाचार बढ़ा है। 2019 तक 37 फीसदी लोग मानते थे कि भ्रष्टाचार कम हुआ है लेकिन अब ऐसा मानने वालों का प्रतिशत 37 से घटकर 19 फीसदी ही रह गया है। इस चुनाव में विपक्ष की सारी उम्मीदें जहां युवा बेरोजगारों और आंदोलनरत किसानों, गरीब, दलित और उन पिछड़ों पर टिकी है जो मुश्किल हालातो से जूझ रहे हैं वही सत्ता पक्ष की उम्मीदें अपनी तमाम केंद्रीय योजनाओं के लाभार्थियों पर जमी हुई है जिन्हें सरकार द्वारा मुफ्त राशन, गैस कनेक्शन व अन्य तमाम योजनाओं को डायरेक्टर बैंक खातों में पहुंचा जा रहा है। केंद्रीय योजनाओं का लाभ लेने वाले लोगों के वोट सत्ताधारी दल को ही मिलेंगे ऐसी सोच नेताओं की भी है। इसमें कोई दो राय भी नहीं है कि देश की 140 करोड़ की आबादी में से 80 करोड़ से अधिक लोग ऐसे हैं जो इन योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं। भले ही इस सरकारी मदद से न उनका जीवन स्तर सुधरा हो या न सुधरा हो लेकिन लोग यह तो मानते ही हैं कि सरकार उन्हें कुछ दे तो रही है और अगर इस देने से उनको थोड़ी भी मदद मिल रही है तो वह कम से कम डूबते के लिए तिनके का सहारा जैसा तो है ही। जहां तक चुनावी घोषणाओं और दावों तथा वायदाें की बात है भाजपा द्वारा इस चुनाव में कोई बड़ा वायदा नहीं किया गया जैसा 2014 व 19 में किए गए थे लेकिन कांग्रेस व इंडिया गठबंधन ने तमाम बड़े—बड़े वायदे किए हैं जनता इन्हें कितना सच मानती है और क्या यह वायदे वोट को प्रभावित कर पाएंगे इसका पता तो मतगणना के बाद ही चल सकेगा लेकिन यह घोषणा पत्र एनडीए के लिए चिंतन मंथन का मुद्दा जरूर बना हुआ है।

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