जमीनों की लूट खसोट

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उत्तराखंड राज्य गठन के बाद जिस तरह से जमीनों की लूट खसोट हुई उसे देखकर अब हर कोई हैरान है। यह जमीनों की लूट खसोट का मामला सिर्फ सरकारी और वन भूमि तक ही सीमित नहीं रहा है। भू माफिया और सूबे के अधिकारियों की जहां भी किसी ऐसी भूमि पर नजर पड़ी जिसे वह आसानी से खुर्द—बुर्द कर सकते थे उन्होंने उसे नहीं छोड़ा। वक्फ बोर्ड को लेकर चाय बागान और शत्रु संपत्तियों से लेकर निजी भूमियों तक तथा नाले खालो और नदियों के प्रवाह क्षेत्र तक जमीनों को कब्जाने और उनकी बिक्री कर खूब धन बटोरा गया। अभी बीते दिनों दून के रजिस्ट्री कार्यालय में दस्तावेजों में कुछ गड़बड़ियों की शिकायत मिलने पर जब जांच के आदेश दिए गए तो पता चला कि यहां तमाम दस्तावेजों में गड़बड़ी का खेल राज्य गठन से जारी है। अलग राज्य बनने से पूर्व यूपी के रजिस्ट्री कार्यालय से जो जमीनों के दस्तावेज हस्ताक्षरित किए गए वही से यह खेल शुरू हो गया था। फर्जी रजिस्ट्री और उसके जरिये जमीनों को बेचने के मामलों की बढ़ती शिकायतों की जांच हुई तो उसमें रजिस्ट्री कार्यालय के कर्मचारियों, अधिकारियों और वकीलों की संलिप्ता का खुलासा हुआ और अभी इस मामले में कार्यवाही जारी है। हरिद्वार में बड़े पैमाने पर शत्रु संपत्ति को बेचने का जो ताजा खुलासा हुआ है उसमें एसडीएम और चार वकीलों सहित 28 लोगों के नाम मुकदमा भी दर्ज कराया गया है। इन जमीनों की लूटपाट का काम अकेले भूमाफिया द्वारा किया जाना संभव नहीं था यही कारण था कि शासन प्रशासन में बैठे अधिकारियों को भी इसमें संलिप्ता लाजमी थी कोर्ट कचहरी के कामकाज को आसानी से कैसे निपटाया जा सकता है इसका आसान तरीका यही था कि इस लूटपाट में वकीलों को भी हिस्सेदार बनाया जाए। यह अलग बात है कि कुछ बड़े मामलों का खुलासा होने पर कुछ वकीलों को भी जेल की हवा खाने पर रही है लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। जिन लोगों ने इस खेल में करोड़ों के वारे न्यारे कर लिए उन पर किसी भी कार्रवाई का क्या प्रभाव पड़ना है वह आजीवन भी ऐसे केसों में मुकदमा लड़ने में सक्षम है। जिलाधिकारी दून के सामने अजबपुर कला का एक ऐसा मामला पहुंचा जिसमें जमीन के स्वामी की मृत्यु के बाद उसके फर्जी पैन कार्ड और आधार कार्ड बनवाकर उसकी जमीन का बैनामा करा लिया गया और दाखिल खारिज तक करा लिया गया। जमीन के स्वामी का कोई वारिस नहीं था बस भू—माफिया के लिए इतनी ही जानकारी काफी थी अब जिलाधिकारी ने इस जमीन को सरकार में निहित करने के आदेश दिए हैं। अभी बीते दिनों ईसी रोड स्थित काबूल हाउस जो शत्रु संपत्ति थी से अवैध कब्जे हटवाकर इसे सरकार में निहित किया गया है। जमीनों की यह लूटपाट किसी एक क्षेत्र या जिले विशेष तक सीमित नहीं है राज्य गठन के बाद से दूसरे राज्यों खास कर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा तथा यूपी के पूंजीपतियों द्वारा उत्तराखंड में जमीनों में बड़ा निवेश किया गया है। जिससे राज्य के भूमाफिया को जमीनों के खरीदार आसानी से मिलते रहे हैं और यह खेल उनके लिए बड़े मुनाफे का सौदा रहा है। नेताओं और अधिकारियों के साथ गठजोड़ के कारण यह धंधा फलता फूलता रहा है। अब तक जितने व्यापक स्तर पर जमीनों का फर्जीवाड़ा हो चुका है कि सत्ता में बैठे लोग अगर चाहे तो भी इसे नहीं सुलझा सकेंगे। प्रदेश भर में फैला भू माफिया का यह मकड़ जाल आसानी से अब सुलझने वाला नहीं है। राज्य गठन के साथ ही अगर इस पर ध्यान दिया गया होता तो शायद स्थिति इतनी अधिक खराब नहीं होती। भू राजस्व से जुड़े विवाद अगर अदालतों की देहरी तक पहुंचते हैं तो इनके सुलझने की संभावना लगभग समाप्त ही हो जाती है कई दशक तक न्याय के लिए लोगों को भटकना पड़ता है। वही सरकारी जमीनों को जरूर आसानी से कब्जा मुक्त कराया जा सकता है बशर्ते सरकार की दृढ़ इच्छा शक्ति हो।

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