लोकतंत्र के साथ खेला

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भले ही अभी लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव के लिए दूसरे दौर का मतदान भी न हुआ हो। लेकिन भाजपा ने बिना चुनाव लड़े और बिना मतदान हुए ही अपनी पहली लोकसभा सीट जीत ली है। गुजरात के सूरत की लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी मुकेश दलाल ने यह सीट जीतकर लोकतंत्र का यह इतिहास रचा गया है। इस सीट पर कुल 12 प्रत्याशियों द्वारा अपने नामांकन पत्र दाखिल किए गये थे जिसमें से 10 निर्दलीय प्रत्याशियों के अलावा भाजपा से मुकेश दलाल और कांग्रेस से निलेश कुमानी ने अपना नामांकन पत्र भरा था। नामांकन पत्रों की जांच से पहले ही भाजपा प्रत्याशी के सेक्रेटरी दिनेश जोधाना ने चुनाव आयोग से कांग्रेस प्रत्याशी के प्रस्तावको को फर्जी होने का आरोप लगाया जिसके आधार पर कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन पत्र रद्द कर दिया गया क्योंकि उनके चार में से तीन प्रस्तावकों के फर्जी हस्ताक्षर होने के कारण ही वह निर्वाचन अधिकारी के समक्ष पेश ही नहीं हुए वहीं कांग्रेस प्रत्याशी निलेश भी बिना कोई आपत्ति जताये पीछे वाले दरवाजे से बाहर निकल गए। अन्य 10 निर्दलीय उम्मीदवारों ने अपना नामांकन वापस ले लिया और चुनाव मैदान में अकेले बचे भाजपा प्रत्याशी दलाल को निर्वाचन अधिकारी ने विजय घोषित कर दिया। इस तरह भाजपा ने बिना चुनाव लड़े ही जीत के साथ 2024 के चुनाव में अपना खाता खोल दिया है। गुजरात के सूरत में लोकतंत्र का यह खेल भले ही कमरे के सामने ही हुआ हो लेकिन इस घटना ने एक बार फिर चंडीगढ़ मेयर चुनाव के चीरहरण की यादों को ताजा कर दिया है। यह माना जा सकता है कि भाजपा ने कांग्रेस प्रत्याशी को मैनेज कर लिया और यह सारा खेल एक सुनोयोजित षड्यंत्र के तहत ही किया गया हो लेकिन कांग्रेस के जिन तीन प्रस्तावको द्वारा नामांकन पत्र के साथ शपथ पत्र दिए गए थे वह फर्जी शपथ पत्र किसने बनाएं और किसके द्वारा बनवाए गए जांच का विषय नहीं है क्या इसके लिए फर्जी प्रस्तावकों के साथ कांग्रेस प्रत्याशी निलेश दोषी नहीं है सवाल यह है कि क्या कांग्रेस और सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में चंडीगढ़ मेयर चुनाव की तरह संज्ञान लेगा। भले ही यह खेल किसी ने भी किया या खेला हो लेकिन जिस तरह से कांग्रेस प्रत्याशी का नामांकन पत्र रद्द हुआ अन्य सभी निर्दलीय उम्मीदवारों से लेकर प्रस्तावक तक गायब हो गए और कैमरे के सामने भी नहीं आए। उससे ऐसा लगता है कि देश का लोकतंत्र भी देश से गायब तो नहीं होने वाला है। सत्ता के लिए सभी नियम कानून व व्यवस्थाओं को तार—तार किए जाने का यह अद्भुत कारनामा करने के खिलाफ अगर न्यायपालिका द्वारा सख्त कदम नहीं उठाया गया तो देश का लोकतंत्र और निर्वाचन प्रणाली सब कुछ एक मजाक बनकर ही रह जाएगा। क्या प्रत्याशी को अपने प्रस्तावको के प्रति जवाब देही नहीं होनी चाहिए या फिर कोर्ट से बनने वाले हलफनामे की का कोई वैधानिकता नहीं होती। यह सवाल न्यायपालिका व निर्वाचन आयोग के साथ सभी प्रत्याशियों के लिए भी विचारणीय है। लोकतंत्र के साथ होने वाला यह कैसा खेल है क्या यह आज के वर्तमान का नया लोकतंत्र है?

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