शगुफे बाजी की राजनीति कब तक?

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कल दशहरा पर्व के मौके पर देश के तमाम बड़े और छोटे नेताओं को एक ऐसे सामाजिक मंच पर आने का मौका दिया गया जिसकी प्रतिक्षा बीते कुछ सालों से सभी सत्तादारी दलों को रहती है। क्योंकि इसका सौभाग्य उन्हें सत्ता में होने के कारण ही मिलता है इसलिए वह अपनी राजनीतिक बातों को हर संभव आम जनता तक पहुंचा पाते हैं। पर्व और त्योहार पर नेताओं को मिलने वाला अवसर इसलिए बहुत अहमियत रखता है क्योंकि यहां उन्हें भीड़ जुटाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं करने पड़ते हैं तथा इसमें उनको या पार्टी को एक चवन्नी भी खर्च नहीं करनी पड़ती है। कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां दिल्ली के द्वारका सेक्टर 10 में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी देहरादून के परेड ग्राउंड में आयोजित रावण दहन कार्यक्रम का हिस्सा बने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर कहा कि समाज से जातिवाद और क्षेत्रवाद को समाप्त करना ही होगा और इस दशहरा उत्सव को हर बुराई पर राष्ट्रभक्ति की जीत का प्रतीक भी बनना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 सालों से केंद्रीय सत्ता के शीर्ष पर आसीन हैं इन 10 सालों में देश के समाज से जातिवाद और क्षेत्रवाद को मिटाने के लिए खुद उन्होंने और उनकी सरकार ने क्या कुछ किया है? या आगे क्या कुछ करने की योजना उनके पास है? इस सवाल का जवाब न तो भाजपा के उन कार्यकर्ताओं के पास है जो गौ रक्षा के नाम पर लोगों को जिंदा जला देते हैं और न प्रधानमंत्री मोदी के पास है। देश की आजादी के 75 सालों में देश में देश के नेताओं द्वारा जिस तरह की राजनीति जातिवाद और क्षेत्रवाद को लेकर की जा रही है वह किसी से भी छिपी नहीं है। वर्तमान दौर में नेताओं के नफरती भाषणों का मुद्दा सबसे ज्यादा गर्म है। आए दिन कोई न कोई नेता धर्म—जाति और सांप्रदाय विशेष को लेकर ऐसा बयान दे देते है कि समाज में भेदभाव और सांप्रदायिकता चिंगारी को हवा मिलती रहे। यहां यह कहना कतई भी अनुचित नहीं होगा कि जाति धर्म और सांप्रदायिकता व क्षेत्रवाद तो वर्तमान की राजनीति के प्रमुख औजार और संजीवनी बन चुके हैं अगर यह खत्म हो गए तो देश के तमाम नेताओं और राजनीतिक दलों की राजनीति ही खत्म हो जाएगी। जिस जाति धर्म सांप्रदायिक व क्षेत्रवाद की विष बेल को हमारे नेताओं ने कभी मंदिर—मस्जिद और कभी मंडल—कमंडल के जरिए 75 सालों तक पोषित किया है आज अगर प्रधानमंत्री उसे बेल को उखाड़ फेंकने की बात कर रहे हैं तो वह बेवजह नहीं है अगर विपक्षी दलों द्वारा देश में 2024 के चुनाव से पूर्व जातीय जनगणना का मुद्दा आगे नहीं बढ़ाया गया होता तो प्रधानमंत्री को इस तरह के शगुफे बाजी की कदाचित भी जरूरत नहीं पड़ रही होती। खैर अब थोड़ी बात उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की करें जो इन दिनों प्रदेश के मुख्य सेवक है। अब तक वह उत्तराखंड को श्रेष्ठ राज्य बनाने की बात करते थे लेकिन वह भी अब दो कदम आगे बढ़कर उत्तराखंड को राष्ट्रगुरु बनने तक का सफर तय कर चुके हैं ऐसा लगता है कि वह उत्तराखंड को देश का सबसे विकसित और अग्रणीय राज्य तो बना चुके हैं अब राष्ट्रीय गुरु बनाने की बारी है। वह विकल्प रहित संकल्प के साथ 2025 तक ही ऐसा करने का दावा कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या नेताओं को इस बात की पूर्ण आजादी है कि वह जब चाहे जो चाहे बोल दे। देश को विश्व गुरु बनाने वाली भाजपा के नेताओं की ऐसी बातों को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा था कि भाजपा के नेता भले ही कर कुछ न सके लेकिन शगुफे बाजी में उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। सवाल यह है कि क्यों सिर्फ कहने भर से देश विश्व गुरु और उत्तराखंड राष्ट्र गुरु बन जाएगा?

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