पलायन सबसे बड़ी समस्या

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सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी ने धामी सरकार को कटघरे में खड़े करते हुए जनसंख्या नियंत्रण कानून के मुद्दे पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि बड़ी बातें करने और भाषण बाजी से राज्य का कुछ भला नहीं हो सकता। वह नहीं समझते हैं कि राज्य में जनसंख्या नियंत्रण कानून की कोई जरूरत है अगर कुछ करना है तो सरकार पलायन रोकने पर काम करें। जन सुविधाओं के अभाव में गांव उजड़ रहे हैं। भले ही यह कोई नया मामला न सही जब किसी पार्टी के नेता ने ही अपनी सरकार के कामकाज पर सवाल उठाया हो। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी सीएम की कुर्सी से हटाए जाने के बाद अपनी ही सरकार को निशाने पर ले रहे हैं लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि पलायन सूबे की सबसे बड़ी गंभीर समस्या है। जिसके समाधान पर बीते 20 सालों में किसी भी सरकार द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की गई है। अब तक सरकारों द्वारा इस समस्या के समाधान पर पलायन आयोग का गठन करने से आगे नहीं बढ़ा जा सका है, जिसका नतीजा शून्य ही रहा है। सीएम धामी ने अभी अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर जरूरत पड़ी तो जनसंख्या नियंत्रण के लिए उनकी सरकार जल्द ही नया कानून लेकर आएगी। सरकार द्वारा राज्य में नया भू कानून लाने की बात भी की जा रही है। ऐसा नहीं है कि राज्य में पहले से जनसंख्या नियंत्रण कानून व भू कानून नहीं है। निकाय चुनाव में वह प्रत्याशी अगर चुनाव नहीं लड़ सकते हैं जिनके दो से अधिक बच्चे हैं तो यह जनसंख्या नियंत्रण कानून उत्तराखंड सरकार का ही लाया हुआ है बाहरी व्यत्तिQ अगर ढाई सौ वर्ग मीटर से ज्यादा प्लॉट नहीं खरीद सकते हैं तो यह भू कानून भी उत्तराखंड सरकार ही लेकर आई थी। अब नए कानूनों की क्या जरूरत है यह बात सरकार ही समझ सकती है। भले ही यह सच सही की कुर्सी पर रहते हुए इन नेताओं को पलायन जैसी समस्याएं नजर न आती हो और पद तथा कुर्सी जाने के बाद वह दूसरों को नसीहतें देते नजर आए लेकिन सूबे में पलायन सबसे बड़ी गंभीर समस्या है राज्य के 1792 गांव पूरी तरह उजड़ चुके हैं यहां से आदमी तो क्या देवी देवता तक विदा हो चुके हैं। बीते 4 सालों की बात करें तो 24 गांव निर्जन हुए हैं वहीं राज्य बनने के बाद 1034 गांव खाली हो चुके हैं। राज्य से हर दिन कई लोग अभी भी पलायन कर रहे हैं। राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में आबादी है जिसे नियंत्रण में रखने को कानून बनाने की बात धामी कर रहे हैं अगर उन्हें कुछ करना है तो इस पलायन को रोकने के लिए कुछ करें तभी पहाड़ की संस्कृति और उत्तराखंडियत को बचाया जा सकता है।

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