सुप्रीम फैसलों का संदेश

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बीते कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट के दो अहम फैसलों से यह साफ हो चुका है कि देश की राजनीति की दिशा और दशा क्या है तथा देश के लोकतंत्र के साथ सत्ता द्वारा किस तरह से खिलवाड़ किया जा रहा है। बीते कल देश की सबसे बड़ी अदालत द्वारा चंडीगढ़ महापौर चुनाव में हुई धांधली पर जो फैसला सुनाया गया है वह भले ही न्यायपालिका में आम आदमी की आस्था को सुनिश्चित करता हो लेकिन इस फैसले के बाद भी कुछ मीडिया प्रतिष्ठानों द्वारा जिस तरह से फिर भाजपा प्रत्याशी के चुनाव जीत चुने जाने की पैरोकारी की जा रही है और आप के मेयर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें हटाने की बात उन तीन पार्षदों के भरोसे की जा रही है जिन्हें इस विवाद के बीच भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है वह बेशर्मी की प्रकाष्ठा ही है। जिस मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है वह वर्तमान दौर की राजनीति में किस तरह की भूमिका निभा रहा है इसके लिए भी इतिहास उसे कभी माफ नहीं करेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से साफ हो चुका है कि सत्ता द्वारा किस तरह से लोकतंत्र का चीरहरण किया जा रहा है। धोखाधड़ी से चुनाव जीतने की इस घटना को पूरे देश ने देखा है। छल कपट की राजनीति से भाजपा की जीत घोषित करने वालों रिटर्निंग अफसर मसीह को क्या सजा मिलती है अलग बात है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और उन तमाम नेताओं की बोलती बंद हो गई है जो अपनी जीत को इंडिया गठबंधन की पहली हार बता कर जश्न मना रहे थे। भाजपा का कोई नेता अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने इस फैसले से लोकतंत्र की हत्या होने से बचा लिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में इलेक्टोरल बांड की व्यवस्था को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द तो कर दिया गया है लेकिन अभी इस पर पूरा फैसला आना बाकी है। किस—किस कॉर्पाेरेट ने किस—किस राजनीतिक दल को कब—कब इस बांड के माध्यम से कितनी रकम चंदे में दी गई जब इसका पूरा सच देश की जनता के सामने आ जाएगा और यह भी पता चल जाएगा कि इसके बदले में सत्ता ने उस कॉरपोरेट को किस—किस तरीके से कितना फायदा पहुंचाने का काम किया गया तो यह सत्ता में बैठे नेताओं की सिर्फ सच्चाई से ही पर्दा नहीं उठाएगा बल्कि उस भ्रष्टाचार की पूरी कलंक कथा को सामने ला देगा जो देश की जनता के साथ किया गया एक बड़ा धोखा है। एन लोकसभा चुनाव पूर्व आए इन दो बड़े फैसलों को लेकर सत्ता पक्ष की बेचैनी बढ़ना भी लाजमी है। उसकी इस बेचैनी के बढ़ने का एक और अहम कारण किसानों का वह आंदोलन भी है जिसे लेकर अब केंद्र सरकार और किसान आमने—सामने हैं। क्योंकि घुमा फिराकर इन घपले घोटालो का लिंक किसानों के हित—अहित से जुड़ता है। जिसके कारण सरकार इस आंदोलन को किसी भी सूरत में दबाने पर आमादा है। इन दिनों जिस तरीके के धमाके हो रहे हैं वह चाहे शंभू बॉर्डर पर किसानों पर ड्रोन से गिराये जाने वाले अश्रु गैस के गोले हो या फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लेकर हो उनकी अनुगूंज अब देश दुनिया में सुनाई दे रही है। भले ही राजनीति और प्रेम में चाणक्य जैसे नीतिकार सब कुछ जायज ठहराते रहे हों लेकिन भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में ऐसा संभव नहीं है। 1977 में देश की जनता इसका प्रमाण दे चुकी है। लोकतंत्र को सत्ता की लाठी से जो हांकने का प्रयास करेगा उसका कोई प्रयास कम से कम भारत जैसे देश में तो संभव नहीं है। इस सच को समझना देश के सभी उन नेताओं के लिए जरूरी है जो देश की जनता को मूर्ख समझने की भूल कर बैठते हैं।

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