दहशतगर्दी से निपटने की चुनौती

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आतंकवाद और दहशतगर्दी भले ही कोई नई समस्या न सही, लेकिन इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता है। बीते कल देश की राजधानी में जो कुछ हुआ उससे कोई ऐसा बड़ा नुकसान न हुआ हो लेकिन दिल्ली के दिल में इसे लेकर कितना डर और असुरक्षा का भाव देखा गया और पुलिस प्रशासन को तमाम स्कूलों की सुरक्षा जांच तथा यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह धमकी महज एक अफवाह है उसके लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ी इसे आसानी से समझा जा सकता है। दिल्ली और एनसीआर के 600 से अधिक स्कूलों में बम धमाके करने की इस अफवाह या धमकी भरे ईमेल ने शासन—प्रशासन को एक बारगी तो हिलाकर ही रख दिया। सच यह है कि आतंकी संगठनों द्वारा या अराजक तत्वों द्वारा कभी भी इस तरह धमकी देकर या पूर्व सूचना देकर कभी कुछ नहीं किया जाता है। 9/11 और 26/11 के आतंकी हमले इसके सबूत है। जब भी कोई बड़ा आतंकी हमला कहीं भी किया जाता है तब इसे पूरी तरह से गोपनीय ही रखा जाता है और किसी ऐसी घटना को अंजाम देने के मंसूबों में अगर कोई संगठन कामयाब हो जाता है तो फिर उसकी जिम्मेदारी लेने का ऐलान किया जाता है। इन घटनाओं के पीछे किसी भी आतंकी संगठन का मुख्य उद्देश्य दहशत फैलाना ही होता है। यह संगठन घटना के बाद अपना नाम बताकर लोगों या किसी भी देश को यह संदेश देने का प्रयास करते हैं कि वह कितने खतरनाक हैं और वह क्या कुछ करने का माद्दा रखते हैं। उन्हें अपने इस तरह के कामों से किसका कितना जान माल का नुकसान हुआ इससे भी कोई सरोकार नहीं होता है। खास बात यह है कि आतंक और दहशतगर्दी के दम पर आज तक कोई आतंकी संगठन कुछ भी हासिल नहीं कर सका है लेकिन इस खून खराबे को लेकर उनकी समझ में आज तक यह बात नहीं आ सकी है। एक समय में हमने पंजाब को आतंक की आग में जलते देखा था हम यह भी जानते हैं कि आज तक इससे क्या हासिल हुआ है। एक समय था जब हम सार्वजनिक स्थलों पर यह अपील लिखी हुई देखते थे कि कहीं भी कोई लावारिस वस्तु दिखे तो उसे न छुए तथा पुलिस को इसकी सूचना दें यहां तक कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से सफर करने वाले यात्री अपनी सीटों के नीचे झांक कर यह देखते थे कि कहीं कोई संदिग्ध वस्तु तो नहीं है। किसी देश या समाज के मन में अगर इस तरह डर बैठा दिया जाए कि आदमी निश्चित भाव से न कहीं आ जा सके और न अपना काम कर सके अगर घर का सदस्य घर से बाहर गया है तो उसकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहे तब ऐसी स्थिति में एक सहज और स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया का जारी रहना संभव नहीं है। कल स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी के बाद दिल्ली के वह लोग जिनके बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं किस कदर दहशतजदा रहे इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। शासन प्रशासन को इस घटना को कतई भी हल्के में नहीं लेना चाहिए। इस तरह की हिमाकत किसने की उसका पता लगाया जाना जरूरी है। इस तरह के अराजक तत्वों या संगठनों से कारगर तरीके से निपटे जाने की जरूरत है। वर्तमान डिजिटल युग में निश्चित तौर पर यह चुनौती अब पहले से अधिक गंभीर हो चुकी है। लेकिन सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस चुनौती का मुकाबला किया जाना भी अत्यंत जरूरी है।

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