नशा व नशा मुक्ति केंद्र, दोनों समस्या

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पुष्कर सिंह धामी ने जब प्रदेश की दोबारा कमान संभाली थी तब उनकी प्राथमिकताओं में नशे से मुक्त उत्तराखंड भी था, यह अलग बात है कि कुछ अन्य बड़ी प्राथमिकताओं में यह प्राथमिकता सामाजिक दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी पीछे छूट गई। लेकिन इस सत्य को कोई राज्यवासी नकार नहीं सकता है कि नशा राज्य की एक बड़ी समस्या है जिसका समाधान ढूंढने में अगर समय लगा तो उत्तराखंड के हालात भी पंजाब के जैसे ही हो जाएंगे। नशा तो बड़ी समस्या है ही इसके साथ ही नशा मुक्ति केंद्र भी बड़ी समस्याएं बन चुके है। प्रदेश में बढ़ती नशा तस्करी के कारण प्रदेश में नशा मुक्ति केंद्रों की बाढ़ जैसी आ गई। कुछ घाघ किस्म के लोगों ने समाज सुधारक बनकर एनजीओ रजिस्टर कराए और नशा मुक्ति केंद्र की दुकानें खोलकर बैठ गए। देश विदेशों से सामाजिक कल्याण के लिए मिलने वाली सहायता इन नशा मुक्ति केंद्रों के संचालकों के लिए बड़े मुनाफे का धंधा बन गया। लेकिन इन नशा मुक्ति केंद्रों की हकीकत क्या है? किस तरह इन नशा मुक्ति केंद्रों में पीड़ितों को शारीरिक और मानसिक रूप से उत्पीड़ित किया जाता है? इसकी हकीकत पीड़ितों की जुबानी और इन नशा मुक्ति केंद्रों में होने वाली मौतों के रूप में अब तक जगजाहिर हो चुकी है। शायद किसी कारागार में भी कैदियों को वैसी यातनाए नहीं दी जाती होगी जैसी यातनाएं नशा मुक्ति केंद्रों में यह नशे के आदी युवक व युवतियां झेलते हैं। उन्हें सिर्फ भूखा—प्यासा ही नहीं रखा जाता है या उनके साथ मारपीट ही नहीं की जाती है बल्कि उनका यौन शोषण तक किए जाने के अनेक मामले अब तक सामने आ चुके हैं अब ताजा मामला दून के चंद्रबनी स्थित न्यू आराध्य फाउंडेशन नशा मुक्ति केंद्र का सामने आया है जहां सिद्धार्थ नाम के युवक की हत्या का आरोप संचालकों पर लगा है। खास बात यह है कि नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती नशे के आदी युवाओं को नशे की डोज उपलब्ध कराने के एवज में उनसे उल्टे सीधे काम कराए जाते हैं। राजधानी दून की बात करें तो बीते एक साल में आधा दर्जन से अधिक नशा मुक्ति केंद्रों में हत्या, आत्महत्या, मारपीट तथा दुष्कर्म के दर्जन भर मामले प्रकाश में आ चुके हैं। इनमें से कई नशा मुक्ति केन्द्र के संचालकों के खिलाफ मुकदमे भी दर्ज हो चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि जिस नशे के कारण प्रदेश के बच्चों और युवाओं का जीवन तबाह हो रहा है और हजारों परिवार अपने बच्चों के गलत रास्ते पर जाने के कारण तमाम तरह की वेदनाएं झेल रहे हैं उस समस्या को उत्तराखंड की सरकार द्वारा गंभीरता से क्यों नहीं लिया जा रहा है। नशा मुक्ति केंद्रों की मनमानी पर लगाम लगाने के लिए शासन स्तर पर अब तक तीन बार ड्राफ्ट बनाया जा चुका है लेकिन यह प्रयास सालों साल गुजरने के बाद भी ड्राफ्ट से अधिक आगे नहीं बढ़ सका है। एक अन्य बात यह है कि राज्य में नशे की तस्करी को रोका जाना। भले ही ड्रग्स कंट्रोल विभाग और आबकारी तथा पुलिस प्रशासन के द्वारा नशा तस्करी के खिलाफ समय—समय पर अनेक अभियान चलाए जाते रहे हो लेकिन यह सच है कि राज्य में नशा तस्करों पर लगाम लगाने के तमाम प्रयासों के बावजूद भी अफीम, चरस, गांजा, ब्राउन शुगर, स्मैक और नशीली गोलियां तथा इंजेक्शनों का कारोबार खूब फल रहा है। तथा तमाम तरह के नए नशे युवाओं को आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं भले ही इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़ रही हो। जब तक शासन—प्रशासन नशा तस्करों पर सख्ती से लगाम नहीं कसेगा न तो नशा से मुक्ति संभव है न नशा मुक्ति केंद्रों के उत्पीड़न से मुक्त हुआ जा सकता है।

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