विगत 2 दिनों से उत्तराखंड में हुए दो बड़े हादसों ने लोगों का दिल दहला दिया है। कोटवार जनपद के बीरोंखाल सिमड़ी में 1 बारातियों से भरी बस गहरी खाई में जा गिरी जिसमें 33 लोगों की जान चली गई तथा 19 लोगों को गंभीर चोटे आई है जो अब जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। वही दूसरा हादसा जो उत्तरकाशी जिले की ऊंची पहाड़ियों डोकराणी वामक में पेश आया जहां निम का 40 सदस्यीय पर्वतारोही दल हिमस्खलन की चपेट में आ गया जिसमें अब तक 9 लोगों के शव बरामद किए जा चुके तथा 14 को रेस्क्यू कर लिया गया है तथा 23 लोग अभी भी लापता है जिनकी तलाश में राष्ट्रीय स्तर पर बचाव और राहत कार्य चलाया जा रहा है। इस रेस्क्यू ऑपरेशन में भारतीय वायु सेना से लेकर एनडीआरएफ तक की टीमें जुटी हुई है। लेकिन जो पर्वतारोही दल के 23 सदस्य 75 घंटे से भी अधिक समय से गहरी बर्फ में दबे हुए हैं उनके जीवित बचने की संभावनाएं बहुत कम बची हैं। देखना है कि रेस्क्यू टीम लापता 23 लोगों में से कितने लोगों को खोज पाने में सफल हो पाती है। इस हिमस्खलन की त्रासद घटना में उत्तराखंड ने अपनी उस बहादुर बेटी सविता को भी खो दिया जिन्होंने अभी हाल ही में एवरेस्ट फतह कर राज्य का नाम रोशन किया था। आज भी एक सड़क हादसे में एक कार के गहरी खाई में गिरने से 3 लोगों की मौत हो गई है सवाल यह है कि जब पर्वतीय राज्यों में इस तरह के हादसे आए दिन पेश आते रहते हैं तो इन राज्यों में आपदा प्रबंधन के तंत्र को मजबूत क्यों नहीं बनाया जाता है। राज्य स्तर पर आपदा प्रबंधन विभाग तो है लेकिन इस आपदा प्रबंधन विभाग का कितना लाभ हो रहा है इसकी समीक्षा किए जाने की जरूरत है। कोटद्वार में हुए बस हादसे में पता चला कि शाम 6 बजे बस खाई में गिरी और रेस्क्यू टीम 12 बजे घटनास्थल पर पहुंची। आपदा प्रबंधन विभाग की टीम अगर उन स्थानों पर भी जहां तक पहुंचने के लिए सड़कों की सुविधा है अगर उसका रिस्पॉन्स टाइम 6 घंटे होता है तो उससे किसी पीड़ित की मदद की क्या उम्मीद की जा सकती है? हादसे का शिकार लोग रेस्क्यू टीम के पहुंचने तक 6 घंटे खुद ही जिंदगी और मौत से लड़ते रहे जो जहां था तड़पता रहा और मरता रहा। यह कोई अकेला वाक्या नहीं है। आए दिन इस तरह की खबरें हादसों के बाद आती रहती हैं। जबकि आपदा प्रबंधन अधिकारी इस रिस्पांस टाइम को लेकर बड़े—बड़े दावे करते हैं। हालांकि यह भी सच है कि उत्तराखंड का आपदा प्रबंधन विभाग बिना दातों के शेर है उसके पास पर्याप्त संसाधनों का भारी अभाव है अब बिना हथियार की फौज से भी तो आप जंग जीतने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। राज्य में एडवेंचर टूरिज्म की बातें तो बहुत बड़ी की जाती हैं लेकिन इसके लिए संसाधनों को कितना विकसित किया गया है? यह एक अहम सवाल है। पर्वतारोहियों के साथ हुए हादसे के कारणों को भी तलाशा जाना चाहिए जब मौसम इतना खराब था तो ऐसे में इस अभियान की अनुमति क्यों दी गई? निम के पास बचाव राहत की क्या सुविधाएं हैं आदि अनेक ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब तलाशे जाने चाहिए।