उत्तराखंड परिवहन निगम के जिन चार डिपो को खत्म करने का निर्णय चार दिन पूर्व लिया गया था उसे अब परिवहन मंत्री के निर्देश पर खत्म कर दिया गया है। इस फैसले के बाद जब इसका विरोध स्थानीय विधायकों और नेताओं द्वारा किया गया तो परिवहन मंत्री ने कहा कि फैसला उनकी जानकारी में नहीं था। खास बात यह है कि जब मंत्री महोदय ने अधिकारियों से पूछा तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि इसकी प्रक्रिया पहले से चल रही थी। यह पूरा प्रकरण उत्तराखंड राज्य की शासकीय प्रणाली कैसे चल रही है? इसकी कलई खोलने के लिए काफी है। राज्य के परिवहन मंत्रालय जैसे महत्वपूर्ण विभाग में चार डिपो जिनमें रुड़की, काशीपुर, रानीखेत और श्रीनगर जैसे डिपो शामिल हैं उन्हें खत्म करने का शासनादेश जारी हो जाता है और परिवहन मंत्री को इसकी जानकारी तक नहीं होती है। अब मंत्री महोदय अधिकारियों को हड़का रहे हैं कि भविष्य में उनकी जानकारी के बिना कोई नीतिगत फैसला न लें साथ ही उन्होंने डिपो खत्म करने के आदेश को भी खत्म करने के निर्देश दे दिए हैं। सवाल यह नहीं है कि यह फैसला कब और किन परिस्थितियों में लिया गया सवाल यह है कि इतने बड़े फैसले से मंत्री अनभिज्ञ थे तो अखबार व मीडिया में खबर आने पर भी उन्होंने कोई आपत्ति क्यों नहीं की? इससे साफ होता है कि जब अधिकारियों की मर्जी से ही सब होता है तो मंत्री महोदय की क्या जरूरत है? सरकार कोई फैसला ले और फिर अपने फैसले को उसे वापस लेना पड़े तो इसमें मंत्री महोदय की तो किरकिरी होती है और उनकी योग्यता पर भी सवाल उठते हैं साथ ही सरकार की भी किरकिरी होती है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के उटपटांग फैसलों के कारण ही उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी और उनके बाद आए मुख्यमंत्रियों को उनके फैसले वापस लेने पड़े थे। जिसे लेकर सरकार की बड़ी फजीहत हुई थी। उत्तराखंड जैसे राज्य में किसी का भी मुख्यमंत्री या मंत्री बन जाना भी अजीब इत्तेफाक रहा है। लेकिन इस इत्तेफाक के नतीजों से सरकार की खूब फजीहतें भी होती रही है। यह ठीक वैसा ही है जैसे अनाड़ी का खेलना और खेल का सत्यानाश करना। मुख्यमंत्री और मंत्री जैसे पदों पर बैठे लोगों को अपनी भाव—भाषा और कार्यश्ौली का विशेष ध्यान रखना होता है। लेकिन राज्य के नेता इसमें हमेशा विफल साबित हुए हैं। जनता दरबार में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र का एक शिक्षिका पर भड़कना और अपना आपा खो देना, भी एक ऐसी घटना थी जिसके लिए उनकी चौतरफा निंदा हुई थी। परिवहन मंत्री चंदन राम दास जो पहली बार मंत्री बने हैं, वर्तमान डिपो समाप्त करने का यह प्रकरण उनके नौसिखिया होने का प्रमाण है लेकिन ऐसी घटनाएं सरकार की तो किरकिरी कराती ही है मंत्रियों की साख भी खराब करती हैं और जनता को हंसने का मौका देती है।