कल कांग्रेस द्वारा अपनी पारंपरिक लोकसभा सीटें अमेठी और रायबरेली के लिए प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ ही नामांकन पत्र भरने की औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया। एनडीए और भाजपा अमेठी से राहुल गांधी को भागने और चुनावी हार से डरने का प्रचार करने में जुटी हुई है जो उसकी एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा थी लेकिन कांग्रेस द्वारा राहुल गांधी को रायबरेली से मैदान में उतार कर तथा अपने एक सामान्य से कार्यकर्ता के एल शर्मा को अमेठी से स्मृति ईरानी के खिलाफ खड़ा करके उसके मंसूबों पर पानी फेर दिया गया है। कांग्रेस के इस फैसले से यह तय हो गया है कि राहुल गांधी वायनाड और रायबरेली दोनों सीटों से चुनाव जीतेंगे। वहीं अगर केएल शर्मा जिन्हें अमेठी के लोग कई दशकों से अच्छी तरह जानते समझते हैं और वह भी अमेठी के हर व्यत्तिQ और समाज के बीच अपनी मजबूत पहचान रखते हैं उन्हें हराना स्मृति ईरानी के लिए आसान नहीं होगा। आज भले ही भाजपा के नेता इस बात का प्रचार कर रहे हो कि राहुल डर गए या भाग गए लेकिन उनके यह बयान यह बताने के लिए काफी है कि इस चुनाव में अगर भाजपा और एनडीए के नेताओं के अंदर किसी का डर बैठा हुआ है तो वह सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी ही है क्योंकि इन सभी नेताओं को यह बात अच्छी तरह से पता है कि राहुल गांधी ही एकमात्र नेता है जो किसी से डरते नहीं है और उन्हें कोई डरा नहीं सकता है। मानहानि के केस में उन्हें फंसाने और उनकी सांसदी छीनने तथा आवास खाली कराने के समय भी राहुल गांधी ने जब साफ कह दिया था कि वह माफी नहीं मांगेंगे और जेल जाने को तैयार है उस वक्त भी तमाम लोग उसके साहस को दुस्साहस बता रहे थे और उनका पूरा राजनीतिक जीवन समाप्त होने की कल्पना भर से परेशान थे, लेकिन राहुल गांधी तब भी नहीं डरे थे और तब भी नहीं भागे थे तो एक चुनाव जीत—हार के डर से उनके डरने और भागने की बात करने वाले भी यह जानते हैं कि वह झूठ बोल रहे हैं। सच यह है कि भाजपा और एनडीए के नेताओं के अंदर अब राहुल गांधी का खौफ इतना बैठ गया है कि उनके सामने अस्तित्व बचाने का संकट पैदा हो गया है उन्हें अभी से यह डर सता रहा है कि अगर इंडिया गठबंधन की सरकार बन गई तो राहुल उनकी भ्ौंस तो छीन ही लेंगे उन्हें जेल भी भिजवा सकते हैं। कल राहुल के रायबरेली से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद पीएम मोदी से लेकर अमित शाह व राजनाथ सिंह तथा यूपी के सीएम योगी तक सभी ने राहुल गांधी का जिक्र जिस अंदाज में किया और वह खबरों की हैडलाइन बन गई, वह यह बताने के लिए काफी है कि राहुल गांधी अब देश की राजनीति और 2024 के चुनाव के लिए क्या हैसियत हासिल कर चुके हैं। कांग्रेस द्वारा राहुल के डरने और भागने के सवालों के जवाब में सिर्फ इतना कहा गया है कि राहुल न किसी से डरे हैं न भागे हैं। कांग्रेस को अपनी रणनीति के हिसाब से चुनाव लड़ना है। भाजपा की रणनीति के अनुसार नहीं। प्रत्याशी तय करना हमारा अपना अधिकार है। अब सोच कर देखिए कि केएल शर्मा ने स्मृति को अगर हरा दिया तो उसके मायने क्या होंगे और स्मृति का क्या होगा। इस चुनाव में कौन जीतेगा और कौन हारेगा तथा किसकी सरकार बनेगी यह अलग बात है लेकिन राहुल व इंडिया गठबंधन ने मोदी को अब जीत की गारंटी नहीं रहने दिया है। अभी चुनाव के कई चरण बाकी हैं लेकिन एनडीए अब तक तो कोई एक भी प्रभावी मुद्दा तलाश नहीं सकी है जिस पर टिके रहा जाना संभव हो। सबको भटकाने वाले इस चुनाव में अब ऐसे भटक चुके हैं कि उनके लिए राहुल गांधी ही सबसे बड़ा मुद्दा बन गए हैं।