कांग्रेस का मंथन अमृत

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ऋषिकेश में आयोजित कांग्रेस का तीन दिवसीय मंथन शिविर कल समाप्त हो गया। इस विचार मंथन से कांग्रेसी नेता कितना अमृत निकाल सके यह अलग बात है। लेकिन कांग्रेसी नेताओं द्वारा 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए एक रोडमैप तैयार कर लिया है। कांग्रेस के चुनावी मुद्दों में सर्वाेच्च प्राथमिकता पर बेरोजगारों का मुद्दा ही होगा। क्योंकि इसका सीधा संबंध पलायन से है। रोजगार सृजन के मामले में राज्य को मॉडल प्रदेश बनाने की बात कांग्रेस नेताओं ने कही है। राज्य में जमीनों की खरीद—फरोख्त की आड़ में सक्रिय भूमाफियाओं के ऊपर नियंत्रण की बात भी यानी कि एक नया और सशक्त कानून लाने के मुद्दे को कांग्रेस अपने घोषणापत्र का हिस्सा बनाएगी। देश में व्याप्त महंगाई और भ्रष्टाचार भी कांग्रेस के चुनावी मुद्दे होंगे। वहीं कुछ ऐसे मुद्दे जिन्हें लेकर प्रदेश के लोगों में नाराजगी है। जैसे देवस्थानम बोर्ड आदि कांग्रेस की चुनावी सूची में रहेंगे। कांग्रेस के विचार मंथन शिविर में सिर्फ चुनावी मुद्दा ही चर्चा का केंद्र में नहीं थे अपितु चुनाव प्रचार की रणनीति क्या होनी चाहिए और उसे कैसे धारदार बनाया जा सकता है इस पर भी मंथन किया गया। कांग्रेस नेताओं को यह समझ आ गया है कि सोशल मीडिया की अब किसी भी चुनाव में कितनी अहम भूमिका होती है। राजनीतिक दलों द्वारा इसका इस्तेमाल अपनी बात आम आदमी तक पहुंचाने के लिए ही नहीं होता है अपितु अपनी पार्टी और प्रत्याशी के खिलाफ होने वाले किसी भी दुष्प्रचार को रोकने में सोशल मीडिया से प्रभावी और कोई दूसरा हथियार नहीं है। कांग्रेस के शिविर में सोशल मीडिया सेक्टर की अधिक से अधिक मजबूत बनाने की तैयारी का निर्णय भी लिया गया है। यह अच्छा है कि इन मंथन शिविरों के बहाने से ही सही कांग्रेसी नेता सालों बाद एक साथ तो दिखे। रही बात किसी भी दल के चुनावी मुद्दों की तो इसमें कोई दो राय नहीं कि कांग्रेस के पास इस बार बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और सरकार की नाकामियों की लंबी लिस्ट है। ठीक वैसे ही लोकलुभावन वायदे भी चाहे जितने किए जा सकते हैं लेकिन अपनी बात को जनता तक पहुंचाना ही चुनाव जीतने के लिए काफी नहीं होता है। जनता को यह विश्वास दिलाना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है कि वह जो कुछ भी कह रहे हैं वह करके दिखाएंगे। चुनाव सिर्फ जनता के विश्वास पर ही जीता जाता है। यह वक्त नेता व राजनैतिक दलों को समझना सबसे ज्यादा जरूरी है। बसपा जैसी राजनीतिक पार्टियां भी हैं जिन्होंने कभी कोई घोषणा पत्र बनाया ही नहीं लेकिन चुनाव तो बसपा ने भी जीते हैं।

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