विचार की कभी हार नहीं होती

0
596

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली हार को लेकर अत्यंत ही व्यथित है उन्होंने अपने एक ट्वीट के जरिए अपनी अंतर वेदना को व्यक्त करते हुए लिखा है कि उनका मन करता है कि गंगा किनारे किसी कुटिया में रहकर भगवान से अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगू। उनकी सोच है कि जिस उत्तराखंडियत का कवच उन्होंने बनाया था उसे भाजपा भी भेद नहीं पाई और प्रधानमंत्री मोदी को उत्तराखंडी टोपी पहनने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन लाल कुआं में मुझे लोगों ने बुरी तरह हरा दिया ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हर बूथ उन्हें दंडित करने का इंतजार कर रहा था। हरीश रावत कहते हैं कि जीत—हार होती रहती है लेकिन विचार की हार नहीं होनी चाहिए। हरीश रावत ने इस ट्यूट में जो कुछ कहा है वह उनकी अंतरव्यथा ही है लेकिन यह पूरा सच नहीं है। महात्मा गांधी ने जिस सत्य और अहिंसा के विचार के साथ अंग्रेजी हुकूमत से लड़ाई लड़ी उनके सत्याग्रह की हार नहीं हुई उनके विचार आज भी जिंदा है और विश्व राष्ट्रों में आज भी उसका डंका बजता है। हरीश रावत सिर्फ एक व्यक्ति विशेष नहीं वह खुद को समूची कांग्रेस मानते हैं जिस तरह से विचार कभी मरता नहीं है और उनकी कभी भी हार भी नहीं होती ठीक वैसे ही इस चुनाव में उत्तराखंडियत की हार भी नहीं हुई है यह हार केवल और केवल हरीश रावत और कांग्रेस की हार हुई है। जिसके लिए वह स्वयं और कांग्रेस जिम्मेवार हैं। कोई व्यक्ति अगर अपनी गलतियों के लिए दूसरे विकल्पों को जिम्मेवार ठहराये तो वह उसके प्रायश्चित का अवसर भी खो देता है। प्रायश्चित के लिए भी सबसे पहले यह जरूरी होता है कि व्यक्ति अपनी गलती की जिम्मेवारी लेने का साहस दिखाएं। इसलिए हरीश रावत को गंगा के किनारे जाकर कुटिया में रहने का भी कोई फायदा नहीं होने वाला है। विचार आदमी की सबसे बड़ी पूंजी कहे जाते हैं मन जब तक चंगा नहीं होता है तब तक गंगा में गोते लगाकर कुछ नहीं होता है। कांग्रेस और हरीश रावत को इस हार की खुले मन के साथ समीक्षा करने की जरूरत है। लगातार की असफलताएं कई बार निरर्थक सोच को जन्म देती है। कभी—कभी स्वार्थवस अच्छी सोच के परिणाम भी अच्छे नहीं आते हैं। कांग्रेस के पास एक से बड़े एक नेता अभी भी मौजूद है कांग्रेस की नीति व नीतिकार सब मिलकर भी अगर कांग्रेस को एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं तो कुछ न कुछ तो ऐसा होगा ही जो कांग्रेस को पीछे और पीछे धकेलता जा रहा है। कांग्रेस अभी भी आपसी गुटबाजी और मैं—मेरी की लड़ाई में उलझी हुई है और स्वयं को खुद ही कमजोर कर रही है युवा नेतृत्व को आगे बढ़ने के मौके नहीं दिए जा रहे हैं जिसके कारण वह पार्टी छोड़ कर भाग रहे हैं। पुराने चेहरों का आकर्षण क्षीण होता जा रहा है ऐसी स्थिति में कांग्रेस व उसके नेताओं का क्या भविष्य 10 साल बाद होगा? यह सोचने को कोई तैयार नहीं। विचार भी तभी प्रभावकारी सिद्ध होता है जब व्यक्ति प्रभावशाली होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here