हजारों स्कूल जर्जर न बिजली पानी है न शौचालय
देहरादून। चंपावत के मौनकांडा राजकीय प्राथमिक विघालय में बीते कल शौचालय की छत गिरने से हुई एक 9 वर्षीय बच्चे की मौत और 5 अन्य के घायल होने की घटना ने राज्य के स्कूलों के हालात की कलई खोल दी है वहीं सरकारी तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है जो अब एक मासूम की मौत के बाद घटना की मजिस्ट्रेटी जांच और जीर्ण—शीर्ण स्कूलों की रिपोर्ट तलब कर रहे हैं।
सवाल यह है कि शिक्षा मंत्री और शिक्षा विभाग को क्या अब तक इन राज्य के जीर्ण शीर्ण जर्जर भवनों की जानकारी नहीं थी और अगर थी तो अब तक इन के जीर्णाेद्धार के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किए गए? खास बात यह है कि एक तरफ हमारी केंद्र की सरकार द्वारा घर—घर शौचालय बनवाये जा रहे हैं और दूसरी तरफ राज्य में हजारों स्कूल ऐसे हैं जहां न तो शौचालय की व्यवस्था है और न पीने के पानी की तथा न बिजली की। इनकी इमारतें इतनी जर्जर स्थिति में है कि इनमें पढ़ने वाले छात्र छात्राओं के साथ कब कोई बड़ा हादसा हो जाए इसकी कोई गारंटी नहीं है।
सवाल यह है कि राज्य गठन के 20 सालों में राज्य के विकास शिक्षा और पलायन के मुद्दे पर बड़ी—बड़ी बातें करने वाली सरकारों और नेताओं ने आज तक क्या किया है। जिस स्कूल में यह हादसा हुआ उसके शौचालय की स्थिति इतनी जर्जर थी कि वह कभी भी ढह सकता था तो फिर बच्चों को उससे दूर क्यों नहीं रखा गया। अब मजिस्ट्रेटी जांच और मां—बाप को मुआवजे से क्या उनका बच्चा उन्हें वापस मिल जाएगा। एक अन्य बात यह है कि इस स्कूल में सिर्फ एक ही शिक्षक की मौजूदगी थी। यह विडंबना ही है कि पहाड़ के स्कूलों में एक—एक शिक्षक के दम पर स्कूल चल रहे हैं जबकि मैदानी स्कूलों में एक की जगह 10—10 शिक्षक भरे पड़े हैं। दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के स्कूलों के आधुनिकीकरण में कीर्तिमान बनाए हैं जिसे लेकर भाजपा के नेता सौ सवाल उठाते हैं लेकिन उन्हें भाजपा शासित उत्तराखंड जैसे राज्य के स्कूलों की स्थिति क्यों दिखाई नहीं देती यह हैरान करने वाली बात है।