उत्तराखण्ड में अब मित्र पुलिस बनी समझौता पुलिस

0
572

देहरादून। प्रदेश में अब पुलिस का काम समझौता कराने तक ही सीमित हो गया है। मुकदमा लिखने से बचते हुए सिर्फ समझौता कराने का ही प्रयास रहता है जिसके बाद पीडित अपना सा मुंह लेकर वापस लौटने में मजबूर हो जाता है।
उल्लेखनीय है कि राज्य निर्माण के बाद पुलिस अधिकारियों का प्रदेश की पुलिस को आधुनिक रूप से मजबूत करने प्रयास रहा है। जिसके चलते कई आधुनिक उपकरणों से पुलिस को सुसज्जित किया गया तथा नयी कार्य योजनाएं तैयार की गयी जिससे की आम जनता के बीच पुलिस की छवि मित्र के रूप में कायम रहे। जिसके लिए एक स्लोग्न भी दिया गया मित्रता, सेवा व सुरक्षा। लेकिन अब उस स्लोग्न से विपरीत कार्य होते दिखाये दिखायी दे रहे हैं। हाल ही में यह देखा गया है कि अगर किसी के घर चोरी की घटना हो जाये तो उसके जूते घिस जाते हैं थाने के चक्कर लगाते हुए, हां कहीं गलती से चोर पकडा गया तो तत्काल मुकदमा दर्ज कर अपना गुडवर्क दिखा दिया जाता है। यह बात अधिकारी भी जानते हैं लेकिन कहते कुछ नहीं हैं। यही नहीं अधिकारी प्रेसवार्ता का भी आयोजन कर देते हैं। वह यह भी नहीं देखते कि यह खुलासा पुराने मामले का है चाहे वह चोर को पकडने के बाद लिखा गया हो। अधिकारी थानेदार को फटकार लगाने से भी बचते हैं। क्योंकि यह छोटा सा प्रदेश है क्या पता कौन सा थानेदार किस मंत्री व अधिकारी का रिश्तेदार निकल जाये और अधिकारी को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पडे। अपनी कुर्सी के डर से अधिकारी किसी थानेदार या दरोगा की क्लास लगाने से बचते हैं। अधिकारियों की इसी कमजोरी का फायदा थानेदार व पुलिस कर्मी उठा रहे हैं। अभी हाल ही में एक थाना क्षेत्र मे ंएक व्यक्ति की कुछ लोगों ने पैसों के लेनदेन को लेकर विवाद हो गया तो उक्त लोगों ने उस व्यक्ति की पिटाई कर दी जिससे उसके कंधे की हड्डी टूट गयी। उसने मेडिकल कराया और मेडिकल लेकर थाने पहुंचा तो थाने में मौजूद दरोगाजी डाक्टर बन गये और वह उक्त व्यक्ति को समझाने लगे की तुम्हारी हड्डी नहीं टूटी है मात्र कंधा उतर गया है। जिसके बाद दरोगा जी ने तत्काल हमलावर युवकों को थाने में बुलवाया और पीडित को सलाह दी कि कहां मुकदमा दर्ज कराकर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाओगे समझौता कर लो। यह सुनकर पीडित व्यक्ति कभी दरोगा की ओर देखता ओर कभी हमलावरों की तरफ। यह एक मामला नहीं ऐसे कई मामले है जिसमें पुलिस का काम समझौता कराने तक ही सीमित रह गया है। वहीं पुलिस अधिकारी बडे—बडे दावे करते हैं की ई—मेल भेजने पर भी मुकदमा दर्ज कर लिया जायेगा। यहां तो पीडित सामने है तब मुकदमा दर्ज नहीं हो रहा है तो ई—मेल का तो भगवान ही मालिक होगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here