राजनीति या प्रोपेगंडा

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देश के आम आदमी की क्या समस्याएं हैं? देश की अर्थव्यवस्था की क्या स्थिति है? देश के किसानों को अपनी समस्याओं को लेकर क्यों सालों तक सड़कों पर आंदोलन करना पड़ रहा है और 50—50 दिन लंबे आमरण अनशन व सैकड़ो किसानों की शहादत के बाद भी उनकी बात को कोई सुनने को तैयार नहीं है? देश के करोड़ों युवा क्यों बेरोजगारी के कारण दिशाहीनता की स्थिति में आकर खड़े हो गए हैं महंगाई कहां जाकर रुकेगी? देश की 80 फीसदी आबादी कब तक मुफ्त की सरकारी सहायता के भरोसे जीती रहेंगी? देश के गरीब कब तक गरीब बने रहेंगे? देश की शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था क्या कभी सुधर सकेगी? ऐसे अनेक सवाल जब मुंह बाएं खड़े हो वहीं देश के सियासत दान अगर धर्म हुआ जाती आधारित राजनीति करने तथा प्रोपेगेंडा पैदा कर अपने राजनीतिक हित साधने में जुटे हो तो आप उनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं। भाजपा की संासद कंगना रनौत कहती है कि देश को असल आजादी 2014 में नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद ही मिली। अभी 2 दिन पूर्व संघ प्रमुख मोहन भागवत कहते हैं कि देश को असल आजादी उस दिन मिली जिस दिन अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा हुई। बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक बयान आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि महात्मा गांधी को उन पर बनी फिल्म से पहले जानता ही कौन था? अभी चंद दिन पहले राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने डॉ भीमराव अंबेडकर के बारे में यह कहकर सनसनी फैला दी थी कि अंबेडकर अंबेडकर, अंबेडकर रटने वाले अगर इतना भगवान को रटते तो उन्हें सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता। सवाल यह है कि इस तरह के बयान देकर सत्ता में बैठे भाजपा के नेता या संघ के नेता क्या देश के इतिहास को बदल सकते हैं देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए जो लंबी लड़ाई देश के लोगों ने लड़ी क्या वह सब बेकार की बातें हैं। लाखों लोगों की शहादत और संघर्ष स्वतंत्रता आंदोलन की गाथा (इतिहास) सब कुछ बेकार है। दूसरा सवाल यह है कि इस तरह के प्रोपेगेंडा रच कर अपनी राजनीति चमकाने का यह खेल कब तक चलता रहेगा? कब तक मंदिर व मस्जिद तथा हिंदू मुस्लिम का यह खेल जारी रहेगा कल कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोहन भागवत के बयान के लिए उन्हें देशद्रोही बताया गया और उनकी गिरफ्तारी की बात की गई। तो अब भाजपा द्वारा राहुल गांधी को भी राष्ट्र विरोधी राजनीति करने के मुद्दे पर घेरा जा रहा है क्योंकि उन्होंने अपने बयान में स्टेट राजनीति का जिक्र करते हुए संविधानिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण का आरोप लगाया था। धन्य है यह प्रोपेगेंडा की राजनीति जिसका वास्तव में राजनीति से कोई सरोकार नहीं है।

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