मूल निवास, भू कानून और स्थाई राजधानी गैरसैंण के मुद्दों को लेकर स्वाभिमान महारैली में उमड़ा जनसमूह इस बात का संकेत है कि उत्तराखंड राज्य आंदोलन की तरह एक और बड़े आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है। इस रैली को भू कानून संयुक्त समन्वय समिति के आह्वान पर बुलाया जरूर गया था लेकिन इस महारैली में महिला मंडल दलों तथा छात्र संगठनों की मौजूदगी के साथ—साथ कुछ स्थानीय संगठनों ने जितने बड़े स्तर पर अपनी सहभागिता सुनिश्चित की और आम नागरिकों की मौजूदगी इसमें देखी गई उससे साफ हो चुका है कि राज्य की वर्तमान सरकार के लिए आने वाला समय कम चुनौती पूर्ण रहने वाला नहीं है। इस रैली में भले ही राजनीतिक दलों और नेताओं को दूर रखने की घोषणा की गई थी लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस नेता गणेश गोदियाल की सक्रिय उपस्थिति व यूकेडी कार्यकर्ताओं का शामिल होना इस बात की भी तस्दीक करता है कि इस गैर राजनीतिक आंदोलन को राजनीति की परछाई से दूर नहीं रखा जा सकता है। इस रैली में जिन तीन उद्देश्य भू कानून, मूल निवास तथा राजधानी के मुद्दे प्रमुख हैं जो विशुद्ध रूप से राजनीतिक मुद्दे ही हैं। उत्तराखंड राज्य जिसे बने 23 साल का समय हो चुका है। आज सूबे के लोग स्वयं को ठगा सा इसलिए महसूस कर रहे हैं क्योंकि उन्होंने इस तरह के अलग राज्य की कल्पना नहीं की थी। बोल पहाड़ी हल्ला बोल के इस आंदोलन में लोगों ने अपनी आवाज बुलंद करते हुए कहा कि राज्य में स्थाई निवास प्रमाण के जरिए सरकारी नौकरियों अन्य राज्यों के लोगों की भर्तियां उन्हें कतई गवारा नहीं है तथा 1950 में की गई संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार उन्हीं लोगों को मूल निवासी माना न जाए जो 1950 से पूर्व में राज्य में रह रहे हैं न की स्थाई निवास प्रमाण पत्र जिसमें 1985 को कट ऑफ डेट की व्यवस्था की गई है। वहीं राज्य गठन के बाद बाहरी राज्यों के लोगों द्वारा जमीनों की खरीद फरोख्त पर रोक लगाने के लिए सशक्त भू कानून बनाया जाए जिसके कारण राज्य के लोग अपने ही राज्य में भूमि विहीन होने से मजदूर बनकर रहने पर विवश हो रहे हैं। तीसरा बड़ा मुद्दा गैरसैंण का स्थाई राजधानी बनाने का है जिस पर राज्य गठन से लेकर अब तक राजनीति तो हो रही है लेकिन राज्य को एक अद्द स्थाई राजधानी अभी तक नसीब नहीं हो सकी है। इन तीन मुद्दों से जुड़े कई सवाल फिर उठना वभाविक है। जिसमें पहला सवाल है पहाड़ बनाम मैदान की लड़ाई का। तो क्या सूबे के लोगों को मैदानी राज्यों में आने से नहीं रोका जाएगा? दूसरा सवाल है जमीनों की खरीद फरोख्त तो क्या दूसरे राज्यों के लोगों ने उत्तराखंड के लोगों से जबरन जमीनें खरीद ली है राज्य के लोगों ने अपनी मर्जी से मनमानी कीमतों पर जमीन बेची हैं तब खरीदारों को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है तीसरा सवाल है। राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव का क्योंकि आधे से अधिक आबादी राज्य के तीन जिलों में रहती है जो मैदानी जिले हैं रही बात सरकार की इन पेचीदा मुद्दों को सुलझा पाना क्या धामी सरकार के लिए आसान होगा शायद नहीं। ऐसे में इसका समाधान क्या हो पाएगा समय ही तय करेगा।