मुकाम व मंजिल से आगे का सच

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यह एक मनोवैज्ञानिक सच है कि आपकी सोच जितनी ज्यादा बड़ी होगी और आप जितने बड़े—बड़े सपने देखेंगे आप उतना ही आगे और आगे बढ़ते चले जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की जो बात कह रहे हैं उनकी इस बड़ी सोच या सपने की प्रशंसा की जानी चाहिए। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिंदुस्तान ने दो सौ साल लंबी गुलामी से मुक्ति के बाद आजादी के 75 सालों में तमाम क्षेत्रों में विकास के नए आयाम स्थापित किए हैं। आज अगर भारत का विश्व भर में डंका बज रहा है तो यह विकास और श्रेष्ठता उसे उपहार में नहीं मिली है। देश के लोगों ने इन 75 सालों में हाड़ तोड़ मेहनत की है और रात दिन खून पसीना बहाया है। मोदी आज अगर देश की अर्थव्यवस्था को विश्व के तीसरे नंबर की सबसे बड़ी उपलब्धि बताने और जल्द ही नंबर वन होने की बात कर रहे हैं तो उन्हें यह भी याद रखने की जरूरत है कि भले ही हमने कितनी भी उपलब्धियां हासिल कर ली हो लेकिन अभी बहुत कुछ ऐसा है जो हम 75 सालों में नहीं कर सके हैं। इस देश की आबादी का आधा हिस्सा आज भी जब देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है निर्धनता और भुखमरी की मार झेल रहा है। जिन बच्चों को स्कूल में होना चाहिए था वह या तो सड़कों पर कूड़ा बिन रहे हैं या फिर बाल मजदूरी कर रहे हैं। भले ही सरकार अपनी स्वास्थ्य सेवाओं और स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी का ढोल पीट रही हो, आज भी करोड़ों लोग बीमारी से मर जाते हैं और उन्हें न दवा मिल पाती है न उचित इलाज। जिस कृषि क्षेत्र को देश की जीडीपी की रीड माना जाता था आज उस कृषि, किसान और मजदूर तथा गांवों की क्या स्थिति है? इसे सत्ता में बैठे लोग या तो समझना ही नहीं चाहते या जानते समझते हुए भी अंजान बने रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। देश की आय दोगुना करने का दावा करने वाले नेताओं के पास क्या इन सवालों का जवाब है कि 75 साल की आजादी के बाद भी इस देश का किसान आर्थिक तंगी की स्थिति में आत्महत्या करने पर क्यों विवश है? क्यों किसान अपनी खेती की जमीनों को बेचकर शहरों में मजदूरी करने को कृषि से अधिक बेहतर विकल्प मान रहा है। आजादी के 75 साल बाद भी देश का युवा क्यों रोजगार की तलाश में भटक रहा है और डिग्री लेने के बाद 10—15 हजार की प्राइवेट नौकरी करने पर विवश है। देश में क्यों आजादी के 75 साल बाद भी रेवड़ियंा बांटने की राजनीति नेताओं व राजनीतिक दलों की मजबूरी बना हुआ है। अगर 75 सालों में देश से भ्रष्टाचार को मिटाने की एक भी ईमानदाराना कोशिश की गई होती तो आज देश के लिए न गरीबी कोई गंभीर समस्या होती न बेरोजगारी। आजादी के 75 साल बाद भी देश की आधी आबादी जो सत्ता की मेहरबानियों पर ही जीवन यापन कर रही है और सत्ता में बैठे लोग इस बात को बताते हुए गर्व कर रहे हैं कि हमारी सरकार इतने करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दे रही है उनके लिए यह गर्व की बात नहीं अपितु शर्म की बात रही होती तो शायद आज देश की यह आधी आबादी भिखारी भी नहीं होती। जिस देश की आधी अवाम को अपना पेट भरने व इलाज करने या पढ़ने के लिए सरकार के ऊपर निर्भर रहना पड़ रहा हो उस देश ने भले ही कितने भी मुकाम हासिल कर लिए हो और उसके नेता भले ही किसी भी मंजिल को पाने का दावा करें लेकिन उनके दावे अविश्वसनीय हैं। रही देश के विकास की बात तो इस देश ने 75 सालों में बहुत कुछ कर लिया और आने वाले समय में वह सब कुछ जरूर कर लेगा जो उसकी जरूरत होगी। लेकिन सच से मुंह मोड़कर समस्याओं का समाधान नहीं किया जा सकता है।

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