बदलाव की आहट

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लोकसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने से पूर्व भाजपा के नेता और रणनीतिकार 2024 की इस राजनीतिक जंग को न सिर्फ आसान मान रहे थे बल्कि अपनी जीत को लेकर उनका आत्मविश्वास सातवें आसमान पर था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लाल किले के प्राचीर से अपने तीसरे कार्यकाल में देश को विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने की घोषणा करने से लेकर अबकी बार 400 पार का नारा देने और विपक्ष के दर्शक दीर्घा में बैठे होने की बात कहना यह बताने के लिए काफी है कि भाजपा अति आत्मविश्वास की सभी सीमाएं लंाघ चुकी थी। 2019 के चुनाव में भाजपा नेताओं ने कांग्रेस मुक्त भारत का जमकर प्रचार किया था और कांग्रेस जैसी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को घुटनों पर लाकर खड़ा कर दिया था तमाम राज्यों से उसकी सरकारों का भी सिमटना और लोकसभा में मुख्य विपक्षी दल की उसकी हैसियत को भी चुनौती पैदा कर दिया जाना तथा कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी को नॉन सीरियस नेता कहकर उनकी छवि को कांग्रेस के पप्पू बताये जाने तक ऐसे किसी भी प्रयास में कोई कमी उठाकर नहीं रखी गई जो कांग्रेस को अप्रसांगिक साबित करने वाली न हो। यहां तक कि भाजपा के नेताओं द्वारा सोनिया गांधी को देश की विधवा और राहुल व प्रियंका को बंटी बबली तक कहने में कोई संकोच नहीं किया गया। जिसे भाजपा नेताओं का अहंकार ही कहा जा सकता है। देश की सत्ता पर अपना एकाधिकार बनाए रखने की रणनीति के तहत भाजपा ने 10 साल के कार्यकाल में विपक्ष को इतना कमजोर बनाने की कि भाजपा का कोई विकल्प ही शेष न बचे, के कारण ही 2024 का लोकसभा चुनाव लोकतंत्र बचाओ और संविधान बचाओ की सीमाओं पर आकर खड़ा हो चुका है। समूची व्यवस्थाओं और संवैधानिक संस्थाओं से लेकर मीडिया तक पर अपना एकाधिकार और वर्चस्व कायम कर चुकी भाजपा सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि राहुल गांधी या कांग्रेस और इंडिया गठबंधन उनके सामने इस तरह की चुनौतियां भी पैदा कर सकता है कि सिर्फ तीन चरण के मतदान के बाद ही सत्ता में बैठे लोगों का आत्मविश्वास इतना डावंाडोल हो जाएगा कि उनके चुनावी भाषणों में सिर्फ कांग्रेस के घोषणा पत्र व राहुल तथा प्रियंका के अलावा कोई मुद्दा ही शेष नहीं बचेगा। कल गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी जनसभा में अपने भाषणों की शुरुआत ही यह कहते हुए कि यह चुनाव राहुल गांधी और मोदी के बीच लड़ा जाने वाला चुनाव है। भाजपा नेताओं को अभी से इस बात का बखूबी एहसास हो चुका है की हवा का रुख क्या है तीन चरण के मतदान होते—होते कांग्रेस और इंडिया गठबंधन अगर मोदी की सत्ता को चुनौती देने की स्थिति में आ चुका है और भाजपा नेता अगर खुद इसे स्वीकार रहे हैं तो अभी तो चार चरण का मतदान बाकी है। सिर्फ आधा चुनाव ही निपटा और राहुल गांधी 4 जून को इंडिया गठबंधन की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं तो यह कोई मामूली बात नहीं है। विपक्ष के मजबूती से आगे बढ़ने का ही संकेत है। चुनाव के नतीजे क्या रहते हैं इसका पता तो 4 जून को ही चल सकेगा लेकिन जिस तरह भाजपा नेता कांग्रेस की राजनीतिक पिच पर खेलते दिख रहे हैं और उनके अपने कोई मुद्दे कारगर नहीं रहे उससे भाजपा के अंदर बेचैनी जरूर है। क्योंकि सत्ता बदली तो नई सरकार बीजेपी से 10 साल का पूरा हिसाब भी जरूर लेगी।

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