विभागीय नीतियों की पेचीदगी, फंसा बच्चों का भविष्य

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आश्रम पद्धति के स्कूलों में दलित छात्रों का प्रवेश बंद

  • 6 स्कूलों में 229 सीटें खाली फिर भी रोक
  • अनुसूचित जातियों में आक्रोश, आंदोलन की चेतावनी, सीएम को पत्र लिखा

देहरादून। राजकीय आश्रम पद्धति के स्कूलों में समाज कल्याण विभाग द्वारा जारी आदेशों के बाद एससी (अनुसूचित) संवर्ग के बच्चों के प्रवेश पर लगाई रोक के कारण चकराता क्षेत्र के अनुसूचित जाति के लोगों में भारी आक्रोश है और वह इसे लेकर आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। क्षेत्र वासियों ने मुख्यमंत्री को भी इस बाबत पत्र लिखकर गरीब अनुसूचित जाति के बच्चों की शिक्षा में बाधक बन रहे इस आदेश को रद्द करने की गुहार लगाई है।
असल में यह मुद्दा 2017—18 में महालेखाकार की उस रिपोर्ट के बाद सामने आया जब इन स्कूलों का ऑडिट किया गया और रिपोर्ट में 60 लाख रुपए अनावश्यक रूप से एससी छात्रों पर खर्च किए जाने की बात कही गई। रिपोर्ट में कहा गया था कि इस योजना का लाभ सिर्फ जनजातियों के बच्चों को दिया जा सकता है। इसके बाद विभाग द्वारा स्कूलों को आदेश जारी कर एससी बच्चों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई।
उल्लेखनीय है कि चकराता क्षेत्र में 19 फीसदी अनुसूचित जातियों के लोग रहते हैं जिनकी आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं है कि वह अच्छे स्कूलों में अपने बच्चों को शिक्षा दिला सके। लेकिन क्षेत्र में आश्रम पद्धति के विघालयों में जिसमें अनुसूचित जनजाति के बच्चों को मुफ्त शिक्षा, भोजन व आवास की सुविधा दी जाती है उन स्कूलों में इन एससी जाति के बच्चों को प्रवेश दे दिया जाता था जो अब सरकारी आदेशों के बाद बंद कर दिया गया है।
इस बाबत जब ट्टसांध्य दैनिक दून वैली मेल, समाचार पत्र के पत्रकारों द्वारा समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि यह आदेश समाज कल्याण विभाग का नहीं बल्कि उत्तराखंड शासन का है। आदेश किसी का भी सही लेकिन दलितों के बच्चों के प्रवेश पर स्कूलों में लगी रोक के कारण बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है। तथा वह शिक्षा के अपने मौलिक अधिकार से वंचित हो रहे हैं। इन स्कूलों में जनजातियों के बच्चों के प्रवेश के बाद भी 239 सीटें खाली हैं लेकिन फिर भी प्रवेश नहीं दिया जा रहा है। क्षेत्रवासी अब आंदोलन व सचिवालय घेराव की चेतावनी भी दे रहे हैं उन्होंने तो सीएम को पत्र लिखकर हस्तक्षेप करने की अपील की है।

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