लोकसभा चुनाव 2024 की राजनीतिक बिसात बिछ चुकी है पहले पटना और अब बेंगलुरु में विपक्षी दलों की बैठक के बाद यह साफ हो चुका है कि आगामी लोकसभा चुनाव एनडीए और इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इंक्लूसिव एलाइंस) के बीच होने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए के सामने इस चुनाव में जीत का हैट्रिक लगाने की चुनौती है तो विपक्ष के सामने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोकने की। बीते कल विपक्षी एकता के इस मंच से इस नए गठबंधन को जहां इंडिया नाम दिया गया वहीं इसके साथ ही इसका समापन जीतेगा इंडिया के नारे से किया गया। इंडिया की अगली बैठक महाराष्ट्र में होगी जिसमें गठबंधन के संयोजक और 11 सदस्यीय संचालन समिति बनाने का काम किया जाएगा। एनडीए बनाम इंडिया के बीच होने वाले 2024 के इस रोमांचक राजनीतिक मुकाबले की पिच अब तैयार हो चुकी है। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सिपहसालार इस बात को लेकर आश्वस्त नजर आ रहे हो कि जीत तो उनकी ही होगी लेकिन अब इस विपक्षी एकता ने एनडीए के सामने एक ऐसी चुनौती खड़ी कर दी है कि उसके नेताओं की पेशानी पर बल पड़ना स्वाभाविक ही है। अब तक भाजपा के नेताओं को यह भरोसा नहीं था कि पूरा विपक्ष एकजुट भी हो पाएगा। लेकिन बेंगलुरु की बैठक से यह साफ हो गया है कि विपक्षी एकता मजबूती से आकार ले रही है। या यह कहिए कि आकार ले चुकी है। भाजपा अलग राज्यों में विपक्ष को आसानी से हराने की जो कूवत रखती थी अब उसके समीकरण इस एकता से बदल चुके हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कल एनडीए की बैठक में यह बात कही थी कि विपक्षी पास पास हो सकते हैं लेकिन साथ—साथ नहीं आ सकते। भाजपा और एनडीए के अंदर इस विपक्षी एकता के खौफ को ही दर्शाता है। भाजपा और एनडीए को विपक्ष के बिखराव की स्थिति में जीत की हैट्रिक से नहीं रोका जा सकता। इस बात को भाजपा के नेता भी अच्छे से जानते हैं और विपक्ष के नेता भी जानते हैं। भले ही यह विपक्षी एकता इन राजनीतिक लोगों की मजबूरी रही हो जैसा कि पीएम मोदी व भाजपा के नेता प्रचारित कर रहे हैं लेकिन इस मजबूरी की एकता से ही भाजपा और एनडीए को सत्ता से बाहर धकेला जा सकता है इसके अलावा अन्य कोई दूसरा विकल्प भी किसी दल के पास नहीं बचा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि इंडिया के सामने चुनावी कई बाधाएं हैं जिन्हें उसे पार करना होगा? क्योंकि उसे सिर्फ चुनाव जीतना ही नहीं साझा सरकार को चलाने की चुनौती और भी अधिक गंभीर होगी। भले ही देश में तीन—चार दशक से जारी गठबंधन की राजनीति के अनुभव अच्छे नहीं रहे हो लेकिन किसी भी व्यक्ति की या राजनीतिक तानाशाही को रोकने और लोकतंत्र तथा संविधान की रक्षा के लिए अब यह गठबंधन की राजनीति भी एक मजबूरी बन कर रह गई है। देश की जनता निश्चित तौर पर अब साफ—सुथरी और विकास पर राजनीति चाहती है। छल कपट और लफ्फाजी वाली राजनीति देश के लोगों को नहीं चाहिए। 2024 का लोकसभा चुनाव कई मायने में नए राजनीतिक आयाम स्थापित करने वाला साबित होगा हम ऐसी उम्मीद कर सकते हैं।