न जाने कौन रंग रे?

0
315


होली यानी रंग पर्व! भारत और सनातन धर्म में इस रंग पर्व का अपना अलग अस्तित्व और महत्व है। भले ही यह दुनिया कितनी भी रंग रंगीली क्यों न हो? और रंगों का अस्तित्व और महत्व को समझना जिंदगी के गूढ़ रहस्यों को समझने से भी कठिन क्यों न हो लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि हर आत्मा किसी न किसी रंग में रंगी होती है ठीक वैसे ही जैसे राधा की आत्मा ष्टयाम रंग में रंगी थी। भौतिक जगत के रंगों और लौकिक जगत के रंगों में थोड़ा फर्क होता है। भौतिक जगत के रंग अस्थाई होते हैं और वह कभी भी फीके पड़ सकते हैं और बदरंग हो सकते हैं। उन पर कोई भी दूसरा रंग चढ़ सकता है लेकिन लौकिक जगत के रंग तो बस सूर ष्टयाम की उस खलकारी कामर जैसे होते हैं जिन पर कभी कोई दूसरा रंग चढ़ ही नहीं सकता। जिस भी रंगरेज ने इस चुनरिया को रंगा है बस वही जान सकता है कि यह कौन सा रंग है जिसे जितना भी धोया जाए वह उतना ही और अधिक चटक निखर कर सामने आता है। होली के बारे में जो पौराणिक मान्यताएं हैं और जिनका जिक्र हमारे धार्मिक ग्रंथों में मिलता है उनके अनुसार हिरण्याकष्ठयप जो स्वयंभू ईष्ठवर था और उसका पुत्र प्रह्लाद जो सिर्फ उस परम ब्रह्म को सत्य मानता था जो नित्यानंद है, के बीच नास्तिकता और अस्तिकता के बीच उस द्वंद की परिणीति है जिसके तहत हिरण्याकष्ठयप ने अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को जलाकर मारने का आदेष्ठा दिया जिसे अग्नि जलाकर नहीं मार सकेगी, जैसा वरदान प्राप्त था। होलीका जो इस प्रयास में खुद ही जलकर मर जाती है और ब्रह्म भक्त प्रह्लाद का बाल बांका भी नहीं होता है। इस धरती पर ऐसे ष्टाक्तिवानों की कोई कमी नहीं लाखों—करोड़ों हिरण्याकष्ठयप आज भी मौजूद हैं जिनके पास बाहुबल और धनबल की कोई कमी नहीं है या यूं कहें कि हर व्यक्ति के अंदर एक हिरण्याकष्ठयप और एक प्रह्लाद विघमान है। लेकिन उस निर्बल का जिसका बल वह परमपिता ईष्ठवर हो उसका भला कोई भी हिरण्याकष्ठयप क्या बिगाड़ सकता है। श्रद्धा का रंग जिस पर चढ़ा हो उसे कोई आग क्या जलाएगी? कोई समुंदर क्या डुबोयेगा, कोई तूफान क्या उखाड़ फेंकेगा? श्रद्धा के रंग के बारे में कहा जाता है कि उसका रंग केवल प्रेम और करुणा है। जिसके मन में राग, द्वेज़ और प्रतिष्ठाोध तथा घृणा के भाव भरे हो वहां भला श्रद्वा के भाव कैसे स्थान पा सकते हैं, प्रेम की डगर तो इतनी सांकरी है कि उसमें दूसरों के लिए अंष्ठा मात्र स्थान भी ष्टोज़ नहीं है। वास्तविकता यही है कि मानव जीवन और यह समूचा संसार रंगों से भरा पड़ा है किसके जीवन पर क्या रंग चढ़ा है इसको समझने की जरूरत नहीं है तेरा अपना मन किस रंग में रंगा है इसे समझना ही काफी है। हम और आप जो इस लौकिक जगत में वास करते हैं हर साल होली आती है और हम न जाने कितने रंगों से रंग जाते हैं लेकिन ऐसे रंगों का और ऐसी होली का क्या अस्तित्व जिसके रंग चंद दिन में ही उतर जाए? इस बार अगर होली खेलनी हो तो कुछ वैसे होली खेलो जैसी राधा ने ष्टयाम संग खेली थी जिसमें पता ही नहीं चला कि ष्टयाम राधा के होली या फिर राधा ष्टयाम की होली।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here