सवालों के घेरे में महिला सुरक्षा

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लगभग 10 साल पहले देश की राजधानी में घटित हुए निर्भया कांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। एक लड़की के साथ बस में दरिंदगी की सारी हदें पार कर देने वाली इस घटना के विरोध में पूरे देश में भारी आक्रोश देखा गया था। अभी चंद दिन ही बीते हैं जब दिल्ली के छतरपुर क्षेत्र में श्रद्धा नाम की लड़की के 35 टुकड़े कर जंगल में फेंके जाने के मामले ने एक बार फिर सभी को चौंका दिया। दिल्ली के ही आदर्श नगर से अब और खबर आ रही है कि यहां एक सिरफिरे आशिक ने रिश्ते खत्म करने पर एक लड़की पर दिनदहाड़े चाकू से कई वार किए जो अब अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही है। दिल्ली में नए साल की पहली रात कंझावाला क्षेत्र में जो कुछ हुआ वह इन दिनों अखबारों व टीवी चैनलों की खबरों में सुर्खियों में है। कार सवार युवकों ने एक लड़की को 12 किलोमीटर तक सड़क पर घसीटा जिसके शरीर के चिथड़े उड़ गए लेकिन दिल्ली की स्मार्ट पुलिस को इसका पता नहीं चल सका। पांडव नगर दिल्ली में कुछ कार सवार युवकों ने जबरन एक लड़की को कार में घुसाने की कोशिश की और उस पर एसिड अटैक किया। उत्तराखंड के अंकिता मर्डर केस को लेकर आज 3 महीने बाद भी लोग इंसाफ के लिए सड़कों पर हैं। हरियाणा के खेल मंत्री द्वारा एक महिला कोच के साथ अभद्र और अश्लील व्यवहार की खबरों से भी पूरा देश वाकिफ है। बहुत ही थोड़े समय पूर्व प्रकाश में आई यह तमाम खबरें यह बताने के लिए काफी है कि देश में महिलाओं की सुरक्षा आज भी कितनी बड़ी समस्या है? दिल्ली के कंझावाला केस के बारे में सोचें तो पता चलता है कि उस रात न पुलिस होश में थी और न वह लड़की जो अपनी मृतका दोस्त के साथ होश में थी। यह कहना गलत नहीं होगा कि शासन—प्रशासन सब बेहोशी में है और हवस के दरिंदे अपनी मनमानी पर उतारू हैं या तो लड़की या महिला उनकी जायज नाजायज बातों को चुपचाप मानती रहे और अगर नहीं माने तो वह उनके श्रद्धा की तरह 36 टुकड़े कर देंगे या फिर अंकिता की तरह नहर में धक्का देकर मार डालेंगे या फिर उन्हें चाकू से गोदकर अस्पताल पहुंचा देंगे या फिर उन पर एसिड डालकर ऐसा कुरूप बना देंगे कि उन्हें अपना चेहरा देख कर भी डर लगने लगे। सवाल यह है कि यह किस तरह का प्यार मोहब्बत या इश्क है? जिसमें मानवीयता और इंसानियत के लिए कोई स्थान नहीं है। द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठाकर अपनी पीठ थपथपाने वाले लोगों को देश में महिलाओं और बेटियों की सुरक्षा के बारे में नए सिरे से सोचने की जरूरत है। महिला सुरक्षा के लिए बनाए गए कानून भले ही कितने भी कठोर हो लेकिन इन कानूनों का खौफ लोगों में क्यों नहीं है? इन तमाम महिला अत्याचारों के बारे में महिलाओं और लड़कियों को भी इस बात पर क्या गौर नहीं करना चाहिए कि उनके पक्ष से भी कहीं कोई ऐसी गलती नहीं की जा रही है जो इस तरह की वारदातों को बढ़ावा दे रही हैं। सच यह है कि अपनी सुरक्षा के प्रति उन्हें खुद भी सतर्क होने की जरूरत है। पश्चिमी देशों की सभ्यता के आवेग में तिनके की तरह बहने वाली युवा पीढ़ी भी इन हालातों के लिए बहुत हद तक खुद भी जिम्मेदार है। जिनकी लापरवाही का खामियाजा उनके परिवार भुगतने पर मजबूर हैं।

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