भले ही कांग्रेस पार्टी के नवनिर्वाचित और अनुभवी राष्ट्रीय अध्यक्ष खडगे राज्यों के मृतप्राय प्रांतीय संगठनों को पुनर्गठित कर उन्हें सक्रिय बनाने की कवायदों मे जुटेे हो लेकिन कांग्रेस को अपनी बपौती मानने और खुद को ही सबसे बड़ा नेता मानने वाले नेताओं के आगे उनके प्रयास कितने सार्थक साबित होंगे यह एक बड़ा सवाल है। बात अगर उत्तराखंड की ही करें तो अभी जब हिमाचल विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत मिली तो उसका जश्न उत्तराखंड में मनाया गया कई बड़े नेताओ ने कहा कि हिमाचल की जीत उत्तराखंड कांग्रेस के लिए एक बड़ा सबक है लेकिन इस बात को अभी सिर्फ दो ही दिन बीते हैं कि इन नेताओं ने सारे सबक भुला दिए। देहरादून के महानगर अध्यक्ष लालचंद शर्मा को उनका कार्यकाल पूरा होने पर पद से हटा दिया गया। उनके हटाए जाने के बाद कांग्रेसी नेताओं की जो प्रतिक्रियाएं आ रही है उनसे साफ संकेत मिलते हैं कि कांग्रेस में किस कदर सिरफुट्टवल है। एक दूसरी घटना पर गौर करके देखिए जिसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व नेता विपक्ष प्रीतम सिंह के जन्म दिन पर कांग्रेस मुख्यालय में जन्मदिन के बधाई पोस्टर को रात के अंधेरे में हटा दिया जाता है। यह सब झगड़े उसी मानसिकता से जुड़े हुए हैं जिसके तहत कांग्रेस के नेता अपने से बड़ा नेता किसी को नहीं मानते हैं। लालचंद शर्मा एक बार 7 साल तक और दूसरी बार 5 साल तक महानगर अध्यक्ष रह चुके हैं। अगर प्रदेश अध्यक्ष उन्हें हटाकर किसी और को यह जिम्मेवारी देना चाहते हैं तो यह उनका अपना अधिकार है अध्यक्ष माहरा को भी चाहिए था कि वह लालचंद शर्मा को विश्वास में लेकर ऐसा करते और उन्हें इससे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का भरोसा दिलाते तो शायद इस पर कोई विवाद होता ही नहीं लेकिन सभी नेताओं की हनक भी पद से ज्यादा है। प्रीतम सिंह को भी पहले प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हटाया गया और फिर नेता विपक्ष की कुर्सी भी उनसे छीन ली गई ऐसी स्थिति में अगर पार्टी के दूसरे नेता होते तो वह न जाने क्या कुछ कर रहे होते, प्रीतम सिंह जो न सिर्फ पार्टी के एक वरिष्ठ और योग्य नेता होने के साथ उन तमाम नेताओं की तुलना में सबसे मजबूत जनाधार वाले नेता हैं अब उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि वह अपना अलग संगठन चला रहे हैं। पार्टी कार्यक्रमों में नहीं आते और अलग कार्यक्रम करते हैं ऐसे नेताओं को अपने आप से पूछना चाहिए कि अगर उनकी जगह आप होते तो आप क्या करते। जो नेता पोस्टरों में मेरा फोटो तेरा फोटो की राजनीति कर रहे हो या मेरा कार्यक्रम तेरा कार्यक्रम का राग अलाप रहे है उनका अपना क्या वजूद है उन्हें इस पर भी गौर करना चाहिए। पद और पोस्टरों में फोटो से कोई नेता बड़ा नहीं हो सकता और न पार्टी से बड़ा कोई नेता होता है जब यह मामूली बात भी इन कांग्रेसी नेताओं को आज तक समझ नहीं आ सकी है तो इन नेताओं से भला क्या उम्मीद की जा सकती है कि वह कांग्रेस का कल्याण करेंगे। और किसी से भी क्या सबक लेंगे? ऐसी स्थिति में कांग्रेस का और इन नेताओं का बस भगवान ही मालिक है।