अंकिता भंडारी की हत्या को 3 माह होने जा रहे हैं। लेकिन इस हत्याकांड को लेकर जनाक्रोश आज भी बरकरार है और विरोध प्रदर्शनों का दौर भी बदस्तूर जारी है। इसके पीछे कुछ तो कारण निहित है? अगर शासन—प्रशासन पर लगातार यह आरोप लग रहे हैं कि वह इस मामले को दबाने या रफा—दफा करने में जुटा है तो वह बेवजह नहीं है। ऐसे कई सवाल हैं जो इस संदेह को पुख्ता करते हैं। इस हत्याकांड के घटनाक्रम पर अगर सिलसिलेवार गौर किया जाए तो इन सवालों का जवाब खोजने से भी नहीं मिलता है। अंकिता भंडारी की हत्या 18 सितंबर को की गई और आरोपियों द्वारा 19 सितंबर को खुद ही राजस्व पुलिस में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई गई। लेकिन 23 सितंबर तक राजस्व पुलिस ने इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं की क्योंकि राजस्व पुलिस का पटवारी आरोपियों का राजदार था और उसे इस घटना के बारे में पूरी जानकारी थी। मामले के तूल पकड़ने पर ऋषिकेश पुलिस द्वारा 23 सितंबर को अंकिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई और इसी दिन तीनों हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया गया। जिनकी गिरफ्तारी होते ही उसी रात वनंतरा रिजॉर्ट के उस कमरे पर बुलडोजर चलवा किया गया जिसमें अंकिता रहती थी। 24 सितंबर को यानी हत्या के एक सप्ताह बाद चीला नहर से आरोपियों की निशानदेही पर अंकिता का शव बरामद कर लिया गया लेकिन उसका और मुख्य आरोपी का मोबाइल आज तक भी जांच कर रही एसआईटी टीम को नहीं मिल पाया। और न एसआईटी टीम को वनंतरा रिजार्ट से कोई अहम सबूत मिल सके हैं और न आज तक अंकिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया है। यही नहीं जिस वीवीआइपी को स्पेशल सर्विस देने के लिए अंकिता पर दबाव बनाने की बात सामने आई थी उसका पता एसआईटी नहीं लगा सकी है। अब एसआईटी आरोपियों का नार्को टेस्ट कराने की बात कह रही है। चार्जशीट दाखिल न करने के पीछे फारेंसिक रिपोर्ट न आना बताया जा रहा है। इसे पूरे केस में हर कदम पर लापरवाही व देरी की क्या वजह हो सकती है, बुलडोजर चलाने से लेकर अंकिता के शव तक एक सप्ताह बाद बरामद होने, वीआईपी का पता न चल पाने, फोन न बरामद हो पाने और चार्ज सीट दाखिल न हो पाने आदि—आदि तमाम सवाल यही बताते हैं कि एसआईटी के पास ऐसा कुछ नहीं है जो आरोपियों को सजा दिला सके। अंकिता के माता—पिता और आम लोग सीबीआई की जांच की मांग यूं ही नहीं कर रहे हैं सभी को लग रहा है कि पुलिस आरोपियों को सजा नहीं दिलवा पाएगी नार्काे टेस्ट से भी क्या होगा जिसकी कोर्ट में कोई मान्यता ही नहीं है यह दलीलें सिर्फ टाइमपास है। इतने बड़े जघन्य अपराध में अगर शासन—प्रशासन अपराधियों को सजा नहीं दिलवा पाता है तो यह पीड़ितों के साथ अन्याय ही नहीं सामाजिक सुरक्षा की भी बड़ी हार होगी।