श्रेय की राजनीति

0
177


अभी विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सरकार ने महिलाओं को 30 फीसदी क्ष्ौतिज आरक्षण और धर्मांतरण जैसे दो अध्यादेश पारित कराए गए हैं। भाजपा अब इन बिलो का श्रेय लेने की रणनीति बनाने में जुट गई है। भाजपा के मीडिया प्रभारी अब इनके जोरदार प्रचार—प्रसार की रणनीति बना रहे हैं। सवाल यह है कि सरकार ने इन बिलों के माध्यम से क्या कुछ ऐसी उपलब्धि हासिल कर ली है। सूबे की महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था एनडी तिवारी सरकार के कार्यकाल में की गई थी जो अब भाजपा के शासन काल तक लागू थी। कुछ बेरोजगारों ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी जिसके कारण हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया गया और इस आरक्षण की व्यवस्था को यथावत जारी रखने के लिए हरी झंडी दिखा दी थी। सरकार द्वारा अगर अध्यादेश नहीं भी लाया जाता तब भी महिलाओं को 30 फीसदी आरक्षण मिलना ही था। ठीक वैसे ही धर्मांतरण कानून की बात जो 1992 से लागू है इस विधेयक में कुछ संशोधन कर इसे थोड़ा कड़ा बना दिया है। लेकिन भाजपा के लिए उसका हर छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम प्रचार का मुद्दा हो जाता है। हर काम के पीछे उसका उद्देश्य जनहित और जन सरोकार की भावना से ऊपर चुनावी लाभ बन जाता है। सरकार ने इस सत्र के दौरान कांग्रेस नेताओं को विधानसभा की बैक डोर भर्तियों पर अपना पक्ष तक नहीं रखने दिया। 2015—16 के बाद की भर्तियों को निरस्त करने का तो वह ढोल पीट रही है लेकिन 2002 से लेकर 2015 तक हुई भर्तियों के बारे में विपक्ष की बात तक सुनने को तैयार नहीं है। हालांकि इस मामले की सुनवाई हाईकोर्ट में हो रही है और अगर हाई कोर्ट को सरकार इस बात से संतुष्ट नहीं कर सकी कि पूर्व की भर्तियों को निरस्त क्यों नहीं किया गया तो फिर सरकार को सभी भर्तियां वैसे ही निरस्त करनी पड़ेंगी जैसे 2016 के बाद की, की गई है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी। एसएसएससी भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई से कराने को सरकार क्यों तैयार नहीं है आयोग के चेयरमैन राजू के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इन तमाम सवालों का सत्ता में बैठे लोग देने को तैयार क्यों नहीं है? सूबे में अंकिता भंडारी केस ने भले ही पहाड़ की आत्मा को झकझोर कर रख दिया हो लेकिन सरकार इसकी भी सीबीआई जांच कराने को तैयार नहीं है। उसे सिर्फ उन मुद्दों पर ही बात करनी होती है जिनका श्रेय लेने से वोट बैंक मजबूत हो सके। महिला आरक्षण और धर्मांतरण ऐसे ही मुद्दे हैं भाजपा नेताओं द्वारा इनका प्रचार—प्रसार खूब किया जा रहा है साधु संत भी धर्मांतरण कानून का स्वागत कर रहे हैं। सरकार ने विपक्ष के सवालों से बचने के लिए 7 दिन का सत्र 2 दिन में समाप्त कर दिया अब विपक्ष भी इसे मुद्दा बना रहा है। सवाल यह है कि क्या राजनीति का अर्थ सिर्फ श्रेय लेना ही हो गया और जन सरोकार के मुद्दे अब मुद्दे नहीं रह गए हैं। सत्ता पक्ष के रवैये से तो यही लगता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here