भाजपा का सत्ता संघर्ष

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बात चाहे कांग्रेस की हो या फिर भाजपा की, सूबे के नेताओं की महत्वकांक्षाए राज्य हितों पर तो भारी पड़ती ही रही हैं साथ ही राजनीतिक दलों के लिए भी मुसीबत का सबब बनती रही हैं। राज्य गठन से लेकर अब तक के 22 साल के सफर में भले ही 5 निर्वाचित सरकारें बनी हो लेकिन 12 मुख्यमंत्री बनना इस बात का सबूत है कि सूबे के सभी नेताओं की महत्वकांक्षा का केंद्र सिर्फ और सिर्फ सीएम की कुर्सी ही रही है। इस कुर्सी के लिए राज्य की पहली अंतरिम सरकार गठन के समय से ही अविराम संघर्ष कारी रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 में से 57 सीटें जीत कर प्रचंड बहुमत का इतिहास रचा था इस सरकार का जब त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में गठन हुआ तो माना जा रहा था कि यह सरकार और नेतृत्व पूरे 5 वर्ष तक कायम रहेगा। लेकिन सरकार के अंतिम कार्यकाल वर्ष में तीन—तीन मुख्यमंत्री बदले गए। जिस भी मुख्यमंत्री को सीएम की कुर्सी से हटाया गया उसका आक्रोश भी स्वाभाविक था क्योंकि इस कुर्सी पर पहुंचने वाले हर नेता की चाहत यही रही है कि अब इस पर वह सर्वकालिक सीएम बना रहे लेकिन पार्टी हाईकमान के आगे किसी की कोई विसात नहीं हो सकती थी, कुर्सी तो छोड़ दी लेकिन तिलमिलाहट हमेशा बनी रही। जो पार्टियों की आंतरिक कलह और गुटबाजी का कारण बनी रही। खास बात यह है कि चुनाव हार कर भी दोबारा मुख्यमंत्री बनने का मौका पुष्कर सिंह धामी को भाग्यवश मिला या फिर पूर्व मेजर जनरल बीसी खंडूरी को मिल सका था। बाकी अन्य किसी को न मिला है और न आगे मिल पाने की कोई उम्मीद दिखाई दे रही है। लेकिन नेताओं की दिवा इच्छाशक्ति और महत्वकांशाओं का क्या करें वह एक बार इस कुर्सी पर बैठे तो फिर इसका मोह जीवन भर नहीं छोड़ पाते हैं। अभी बीते दिनों पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत ने गैरसैंण और भ्रष्टाचार तथा कमीशन खोरी को लेकर अपनी पार्टी की सरकार पर कई सवाल उठाए थे। जिन्हें लेकर देहरादून से दिल्ली तक हड़कंप की स्थिति देखी गई। भाजपा के शीर्ष नेताओं के बीच यह चर्चा का सबसे अहम मुद्दा बन गया अभी यह आरोप—प्रत्यारोपों का मामला शांत भी नहीं हुआ था की धामी सरकार द्वारा पूर्व सीएम त्रिवेंद्र के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले को लेकर हाईकोर्ट द्वारा दिए गए सीबीआई जांच के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी को वापस लेने की बात सामने आ गई। अब त्रिवेंद्र रावत कैंप द्वारा सरकार की इस कार्रवाई को पूर्व सीएम त्रिवेंद्र पर बड़ा हमला मान रहा है। धामी भी एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह त्रिवेंद्र और तीरथ के द्वारा सरकार पर लगाए गये आरोपों को सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति ही बता कर यह कह रहे हैं कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी चाहे कोई कितना भी बड़ा नेता या अधिकारी क्यों न हो बख्शा नहीं जाएगा। उनका यह बयान और एसएलपी वापस लेना त्रिवेंद्र को खुली चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा के अंदर चल रहा है यह शीतयुद्ध सही मायने में सत्ता का वह संघर्ष है जिसके कारण 22 साल में 12 मुख्यमंत्री बदले गए हैं। इसका परिणाम क्या होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन यह सच है कि भाजपा के अंदर कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है।

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