- क्या वीरेंद्र तोड़ेंगे भाजपा का वर्चस्व
- सौरभ की सौम्यता करेगी क्या कमाल
- मतदाता दून के वर्तमान हाल से असंतुष्ट
देहरादून। निकाय चुनाव प्रचार अब अपने चरम पर पहुंच चुका है भाजपा और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत प्रचार में झौंंक रखी है। राज्य के 11 नगर निगमों सहित अन्य तमाम नगर पालिकाओं पर कब्जे की इस जंग में कौन कहां खड़ा है और किस जगह किसके हाथ कितनी सफलता और असफलता लगती है यह तो 25 जनवरी को होने वाली मतगणना के बाद ही पता चल सकेगा लेकिन राजधानी दून के महापौर की कुर्सी को लेकर इस बार दो छात्र नेताओं के बीच जंग होने जा रही है वह अत्यंत ही रोमांचक और कांटे की टक्कर है। प्रत्याशी अपनी—अपनी जीत को लेकर आशावंतित है वही जनता क्या सोचती है यह एक अलग विषय है।
महापौर की कुर्सी पर लंबे समय से काबिज रही भाजपा ने अपने समय में क्या कुछ काम किया क्या नहीं किया यह जनता के सामने है तथा राजधानी दून की सड़कों की सफाई व्यवस्था की, यातायात व्यवस्था की, ड्रिनेज सिस्टम की क्या कुछ स्थिति है यह भी जनता के सामने है। स्मार्ट सिटी की श्रेणी में आने वाले देहरादून में अब 100 वार्ड है। जब से स्मार्ट सिटी के काम शुरू हुए हैं शहर के लोग अव्यवस्थाओं से जूझ रहे हैं। शहर की सड़कों पर जाम की ऐसी स्थिति बनी हुई है कि आवागमन में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। एक समय था जब 60 वार्ड थे तब दून की जनसंख्या 5—6 लाख थी और अब यहां वोटरों की संख्या 7 लाख है, और आबादी 12 लाख पर पहुंच गई है। जरा सी बारिश में पूरा शहर तालाब में तब्दील हो जाता है और अब लोग अपने पुराने स्वच्छ दून, सुंदर—दून, साक्षर दून को ढूंढते फिर रहे हैं। जिसकी जगह अब कंक्रीट का दून कब्जा कर चुका है।
दून महापौर पद के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा के सौरभ थपलियाल और कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र पोखरियाल के बीच है। दोनों ही प्रत्याशी छात्र राजनीति से आए हैं तथा दोनों ही पहाड़ी मूल से ताल्लुक रखते हैं। दोनों ही अपने सौम्य स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। जहां भाजपा प्रत्याशी सौरभ अपनी पार्टी की उपलब्धियां और उन पर आगे बढ़ने का दावा कर रहे हैं तो वहीं कांग्रेस प्रत्याशी वीरेंद्र शहर की बदहाल व्यवस्थाओं के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराने के साथ दून को फिर हरित दून और सुंदर तथा स्वच्छ दून बनाने के मुद्दों और अवैध बस्तियों को नियमित किए जाने के मुद्दों को प्रमुखता से उठा रहे हैं। 23 जनवरी को दून के 7 लाख मतदाता किसे महापौर की कुर्सी पर बैठाने का फैसला करते हैं समय ही बताएगा। लेकिन भाजपा उम्मीदवार की दुश्वारियाें को भाजपा के वह नेता और कार्यकर्ता भी बढ़ाये हुए हैं जिन्हें पार्टी ने हाशिये पर धकेल दिया है।