देश की सर्वाेच्च अदालत ने बीते कल कोरोना से होने वाली मौतों का मुआवजा दिए जाने का जो फैसला सुनाया है वह अत्यंत ही राहत देय है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी की जान का कोई मोल नहीं हो सकता है लेकिन इस कोरोना काल में जिस तरह की मुश्किलों का सामना पीड़ितों के परिजनों को करना पड़ा है उसकी पीड़ा अनंत है। दवाओं और ऑक्सीजन के लिए जो मारामारी उन्होंने झेली है तथा अस्पतालों में बैड और आक्सीजन न मिलने पर अपनों को बिना इलाज के मरते हुए देखा है उसकी वेदना व दर्द को सिर्फ वही जान और समझ सकते हैं जिन पर बीती है। इस आपदा काल में वह अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार तक से वंचित रह गए जिसका मलाल उन्हें उम्र भर रहेगा। भले ही कोरोना से हुई मौतों के लिए अदालतों ने सरकारों को जिम्मेवार बताया हो लेकिन इन सरकारों पर अगर कोई आपराधिक मामला नहीं चलाया जा सकता है तो उन्हें इन मौतों की क्षतिपूर्ति देने के लिए बाध्य जरूर किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोरोना से मरने वाले सभी लगभग चार लाख मृतकों के परिजनों को 4—4 लाख मुआवजा देने की बात कही थी लेकिन सरकार द्वारा इससे हाथ खड़े कर दिए गए। लेकिन कोर्ट के इस आदेश के बाद यह तो सुनिश्चित हो गया है कि सरकारों को इन मौतों का मुआवजा तो देना ही पड़ेगा। यह मुआवजा कितना होगा यह अब कोर्ट ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण पर छोड़ दिया है। देखना है कि वह क्या मुआवजा राशि तय करेगी? सच यह है कि कोरोना से जान गवाने वालों में अनेक परिवार ऐसे हैं जिन्होंने अपनों को बचाने के लिए 10—15 लाख भी खर्च किए हैं वही कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिन्होंने इलाज के लिए कर्ज तक लिया है तथा कई परिवारों के तो कई कई सदस्य कोरोना ने उनसे छीन लिए हैं। दरअसल यह दर्द बहुत बड़ा है। यदि सरकार द्वारा बिना किसी अगर—मगर के इन प्रभावितों को थोड़ी बहुत आर्थिक मदद मिल पाएगी तो उन्हें इस बीमारी के कारण हुई आर्थिक तंगी से बाहर आने में कुछ तो सहायता मिलेगी। लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद भी अभी इन प्रभावितों के लिए मुआवजा मिलने की राह आसान नहीं होगी। बहुत सारे अगर मगर इस मुआवजे की राह में रोड़े अटका देंगे। बिहार सरकार अपने राज्य में कोरोना मृतकों के परिजनों को चार चार लाख मुआवजा दे रही है लेकिन जो राज्य के लोग अन्य किसी राज्य में कोरोना से मरे हैं उन्हें वह मुआवजा देने से मना कर रही है। अपने गृह राज्य में इलाज न मिलने पर लोग दिल्ली व चंडीगढ़ सहित न जाने कहां—कहां इलाज के लिए भटकते फिरे। उस दौर में परेशानी झेलने वालों के साथ अब यह नाइंसाफी नहीं है तो क्या है? सत्ता जब मौतों का सच छुपा सकती है तो मौतों के मुआवजे से बचने के लिए भी कई रास्ते तलाशेगी। अच्छा हो कि कोर्ट इसके लिए स्पष्ट गाइडलाइन तैयार कराएं। कोरोना से होने वाली मौतों को अन्य बीमारियों से होने वाली मौत बता कर भी मुआवजे से बचने की कोशिश की जा सकती है। देखना होगा कि कोरोना मौतों का मुआवजा कितने परिवारों को मिल पाता है।