यूसीसी महिलाओं के अधिकार संरक्षण में मील का पत्थर

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  • कांग्रेस का सुझाव, प्रवर समिति को सौंपा जाए बिल
  • बिना रजिस्ट्रेशन के शादी नहीं मान्य
  • लिव इन रिलेशन को करना होगा सार्वजनिक

देहरादून। उत्तराखंड सरकार द्वारा यूसीसी बिल विधानसभा में पेश कर दिया गया है। यूसीसी बिल को लेकर महीनों से चर्चाओं का दौर जारी था तरह—तरह के कयास लगाये जा रहे थे कि ऐसा होगा वैसा होगा? लेकिन अब इसके सदन के पटल पर रखे जाने के बाद सब कुछ साफ हो चुका है। मोटे तौर पर यूसीसी के इस बिल के बारे में यही कहा जा सकता है कि सभी जाति, धर्म और संप्रदायों के लिए समान कानून की तैयारी करने वाले इस बिल में नागरिकों के संवैधानिक मौलिक अधिकारों को संरक्षण देने का काम ही किया गया है। तथा धार्मिक और सांप्रदायिक ट्रेडीशन से बिना छेड़छाड़ किए पारिवारिक और सामाजिक सरोकारों को पूरा करने की कोशिश की गई है। लेकिन फिर भी इस बिल में जो व्यवस्थाओं में थोड़ा बहुत बदलाव आना लाजमी है लोग इस पर क्या राय रखते हैं और उनकी क्या प्रतिक्रियाएं होती है समय के साथ ही पता चल सकेगा। मुख्य तौर पर यह बिल महिलाओं के सशक्तिकरण में मील का पत्थर साबित जरूर होगा।
इस बिल में प्रारंभिक जानकारी के अनुसार अब हर जाति धर्म के लोगों के लिए शादी का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है। बिना रजिस्ट्रेशन कोई शादी वैध नहीं मानी जाएगी तथा लड़की लड़के की आयु सीमा 18 से 21 वर्ष तय की गई जिससे नाबालिक बच्चियों के विवाह पर रोक लगाई जा सके। एक पत्नी के जीवित रहते अब कोई दूसरी शादी नहीं कर सकेगा यानी बहु विवाह को पूर्णतया प्रतिबंधित किया गया है। लिव इन रिलेशन शिप के बढ़ते चलन से जनित समस्याओं के समाधान के लिए लिव इन के संबंधों को उजागर करने तथा माता—पिता की सहमति को जरूरी किया गया है साथ ही इस रिश्ते से जन्म लेने वाले बच्चों के भरण पोषण की जिम्मेदारी भी सुनिश्चित की गई है। संबंध विच्छेद के लिए शादी के एक साल बाद ही पहल की जा सकेगी उससे पहले नहीं। यही नहीं संबंध विच्छेद सिर्फ कोर्ट के द्वारा ही मान्य होगा तलाक आदि तरीके से नहीं। इस बिल में हलाला पर प्रतिबंध लगाया गया है। लड़का और लड़की को माता—पिता की विरासत में समान अधिकार इस कानून में दिया गया है। इस बिल में मुस्लिम महिलाओं को भी समान रूप से बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया गया है।
सभी धर्म और संप्रदाय पूर्व की तरह अपने धार्मिक और जातीय संस्कारों और परंपराओं को संपन्न कर सकेंगे। किसी भी धार्मिक भावनाओं और क्रियाकलापों को करने की आजादी होगी। इस बिल पर विस्तार से चर्चा के बाद अभी इसमें अगर जरूरी होगा तो संशोधन भी किया जा सकते हैं। कांग्रेस के विधायकों का सुझाव है कि इसे अभी प्रवर समिति को सौंपा जाए। इस बिल के विधानसभा से पारित होने के बाद इसे राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा जहां से राष्ट्रपति की मंजूरी को भेजा जाएगा। राष्ट्रपति की मोहर लगने के बाद ही यह बिल कानून का रूप लेगा।

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