नई दिल्ली। देश में बढ़ते आत्महत्या के केसेस को देखते हुए सेंट्रल गवर्नमेंट ने राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति की घोषणा की है। इन केसेस को कम करने और लोगों को जागरुक करने के लिए अब ‘आत्महत्या रोकथाम सिलेबस’ पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाएगा। स्टूडेंट्स जानेंगे कि कैसे तनाव और अवसाद की स्थिति से बचा जा सकता है ताकि खुद की और अपने आसपास के लोगों की सहायता कर सकें।
केंद्र सरकार पहली बार राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम नीति लायी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 63 पेज की इस नीति में साल 2030 तक आत्महत्या के चलते मृत्युदर को 10 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य तय किया है। दुनिया में आत्महत्या से हर तीसरी महिला और हर चौथे पुरुष की मौत इंडिया में होती है। इस नीति को लागू करने के लिए तीन साल में प्रभावी निगरानी तंत्र बनेगा। यही नहीं सरकारी की योजना है कि पांच साल के अंदर सभी जिलों में मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाकर जागरूकता बढ़ायी जाएगी। मनोरोग के शिकार लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एकजुट होकर प्रयास किए जाएंगे। आठ सालों में ये सिलेबस में शामिल होगा और बच्चे प्राइमरी लेवल पर ही इस बारे में पढ़ेंगे।
आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में होने वाले सुसाइड के कुल मामलों में सबसे अधिक मामले इंडिया में होते हैं। विभिन्न रिपोर्ट्स से पता चलता है कि हमारे देश में हर रोज 450 लोग सुसाइड करते हैं यानी हर घंटे में 18 लोग अपनी जान देते हैं। सुसाइड रेट 36.6 प्रतिशत पहुंच चुका है और इनमें बड़ी संख्या में 18 से 35 वर्ष के युवा हैं।
एनसीआरबी यानी नेशनल क्राइम ब्यूरो के मुताबिक साल 2021 में 1,64 लाख लोगों ने आत्महत्या की। इसमें सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पं. बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में सामने आये। कोरोना महामारी के बाद लोगों में सुसाइड करने की टेंडेंसी और बढ़ी है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक साल 2019 में दुनिया में सात लाख से अधिक लोगों ने सुसाइड की। इनमें आत्महत्या करने वालों में सबसे ज्यादा भारतीय थे कुल 36.3 प्रतिशत। अगर कुछ साल पीछे जाएं तो साल 1990 में यह दर 25.3 परसेंट थी।