सरपट दौड़ती महंगाई

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सरपट दौड़ती महंगाई ने आम आदमी का जीवन दूभर कर दिया है। कोरोना की मार से पहले से ही बेहाल जनता जैसे—तैसे अपने जीवन को आगे धकेलने में जुटी है लेकिन बढ़ती महंगाई अब उसके हाथ से निवाला छीन लेने को तैयार है। बीते सिर्फ 15 दिनों में रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में 50 रूपये की वृद्धि इसका एक उदाहरण है। बीते 1 साल में रसोई गैस और पेट्रोल डीजल की कीमतों में रिकॉर्ड तोड़ वृद्धि हुई है। पेट्रोल की कीमते 100 और डीजल की 90 रूपये के पार जा चुकी हैं वहीं घरेलू रसोई गैस सिलेंडर की कीमतें 900 रूपये और व्यवसायिक गैस सिलेंडरों की कीमतें 1740 के पार पहुंच गई है। सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर की कीमत में 1 साल में लगभग 2 रूपये की वृद्धि हुई है जिसका सीधा असर आम आदमी की जिन्दगी पर पड़ा है पेट्रोल डीजल की कीमतों में लगी आग ने सभी आम उपयोग की वस्तुओं की कीमतें आसमान पर पहुंचा दी है वहीं रही सही कमी को जमाखोरों और मुनाफाखोरों ने पूरा कर दिया है। भले ही भाजपा के नेताओं द्वारा हर मंच से डबल इंजन की सरकार और सबका साथ सबका विश्वास सबका विकास का ढोल पीटा जा रहा हो लेकिन कोरोना काल में बेरोजगार हुए लोगों व गरीब तथा आम नागरिकों का जीवन संकटों से भर दिया है। मुश्किल इस बात की है कि 50 किलो का आलू और 230 रूपये लीटर का खाघ तेल खिलाकर सरकार किसका विकास कर रही है? और किसके साथ खड़ी है भाजपा के जो नेता अब यह कह रहे हैं कि गैस व पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों को मत देखो मोदी सरकार के कामों को देखो उन्हें आम आदमी की समस्याओं की समझ कब आएगी। क्या अब वह देश के लोगों को भूखा प्यासा रहकर जंग लड़ने और जीतने की नसीहतें दे रहे हैं। सरकार क्या गरीब कल्याण योजना से पांच—पांच किलो मुफ्त राशन देने और मुफ्त कोरोना टीका लगवा कर उनके एवज में महंगाई झेलने को बाध्य कर रही है। अभी सरकार द्वारा उज्ज्वला योजना पार्ट—2 शुरू की गई है क्या इस पर होने वाले खर्च की भरपाई के लिए सरकार ऐसा कर रही है। मोदी के काम देखो का राग अलापने वाले नेताओं को उन लोगों से शायद कुछ नहीं लेना है जिनका परिवार 10—15 रूपए की सीमित आय में चलता है। भाजपा के नेताओं का तर्क है कि महंगाई बढ़ी है तो वेतन भी तो बढे़ हैं? क्या इन नेताओं को पता भी है कि देश के कितने लोग सरकार से वेतन पाते हैं और कितने दिहाड़ी मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं। यह समस्या अमीरों की नहीं है सिर्फ उन गरीबों की है जो दाल रोटी के लिए 8—10 घंटे हर रोज हाड़ तोड़ मेहनत करते हैं सरकार को इनकी तरफ भी देखने की जरूरत है। चुनावी लाभ के लिए बांटी जाने वाली मुफ्त की सौगातों को बंद कर सरकार को आम आदमी की रोजी—रोटी की चिंता भी करनी चाहिए।

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