सरकार की नाक का सवाल बना देवस्थानम बोर्ड

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आसान नहीं होगा कोई भी फैसला
बोर्ड को रद्द किया तो होगी किरकिरी

देहरादून। देवस्थानम बोर्ड गठन का सेेहरा सर बांधने वाले पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भले ही अब हाशिए पर चले गए हो लेकिन उनका यह विवादित फैसला सरकार और भाजपा के लिए एक ऐसी समस्या बन चुका है जिसका कोई समाधान किसी को नहीं सूझ रहा है। सरकार किसी भी सूरत में अपने इस फैसले को वापस लेने के पक्ष में नहीं है क्योंकि इससे उसकी न सिर्फ और अधिक किरकिरी होगी अपितु विपक्ष को हावी होने का एक बड़ा मौका मिल जाएगा।
दो दिन पूर्व त्रिवेंद्र सिंह को केदारनाथ में जिस शर्मनाक विरोध का सामना करना पड़ा वह अब सरकार को इसे रद्द न करने की नसीहत देते हुए इसके नुकसान तो गिना रहे हैं लेकिन तीर्थ पुरोहितों के गुस्से को कैसे शांत किया जाए और चुनाव में होने वाले संभावित नुकसान से सरकार और पार्टी कैसे बचे इसका कोई नुस्खा उनके पास भी नहीं है।
विपक्ष कांग्रेस द्वारा इस मुद्दे पर भाजपा सरकार को फंसा हुआ देखकर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वह इस पर फैसला ले। क्योंकि कांग्रेस को पता है कि उसके दोनों हाथों में लड्डू है। अगर सरकार फैसला नहीं करती है तो वह तीर्थ पुरोहितों के लिए बड़ा धोखा बताकर अपनी सरकार आने पर इसे रद्द करने का भरोसा दिलाकर उन्हें अपने पक्ष में खड़ा कर सकती है और रद्द करने पर इसे भाजपा सरकार को थूक कर चाटने वाली सरकार बताने से नहीं चूकेगी। उसे भाजपा के खिलाफ यह कहने का मौका मिल जाएगा कि भाजपा नेताओं के पास सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। यह अपने ही फैसलों को पलटने वाली सरकार है। गैरसैंण को तहसील बनाने जैसे अपने फैसलों को लेकर वह पहले ही अपनी भद्द पिटवा चुकी है। सरकार की नाक का सवाल बने इस मुद्दे पर भाजपा आगे कुआं और पीछे खाई वाली स्थिति में है जो उनकी खुद ही पैदा की गई समस्या है।

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