चुनाव खर्च में गुणात्मक वृद्धि, मतदान प्रतिशत की सुई अटकी : हर एक वोट पर एक हजार खर्च

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  • कई दशकों से 55—60 फीसदी पर अटका मतदान प्रतिशत
  • चुनाव खर्च में गुणात्मक वृद्धि, मतदान प्रतिशत की सुई अटकी : हर एक वोट पर एक हजार खर्च

देहरादून। आज लोकसभा चुनाव के प्रथम चरण का चुनाव हो रहा है। सात चरणों में होने वाले इस चुनाव पर 120 हजार करोड़ का सरकारी खर्च आने का अनुमान है। वहीं राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी कितना धन खर्च करते हैं इसका सही आंकलन संभव नहीं है क्योंकि चुनाव आयोग द्वारा तय खर्च सीमा इसमें कोई मायने नहीं रखता प्रत्याशी उससे कई गुना ज्यादा खर्च करते हैं। आजादी के बाद चुनावी खर्च में गुणात्मक वृद्धि हो रही है और आज चुनाव इतना खर्चीला हो चला है कि प्रति वोट एक हजार रूपये के खर्चे तक जा पहुंचा है। लेकिन तमाम जागरूकता अभियानों के बावजूद भी मतदान का औसत प्रतिशत 55—60 प्रतिशत के दायरे को नहीं लांघ पाया है।
देश में आजादी के बाद होने वाले पहले लोकसभा चुनाव में 10 करोड रुपए खर्च हुए थे। बात अगर 2014 के लोकसभा चुनाव की करी जाए तो इस चुनाव में सरकारी खर्च लगभग 30 हजार करोड़ आया था जो 2019 के चुनाव में ठीक दो गुना बढ़कर 60 हजार करोड़ हो गया। वर्ष 2024 के चुनाव के लिए जो सरकार का अनुमानित चुनावी खर्च आंका गया है वह 120 हजार करोड़ है। एक अनुमान यह भी है कि सरकार द्वारा पूरी चुनावी व्यवस्था पर जितना खर्च किया जाता है उतना या फिर उससे कहीं अधिक प्रत्याशियों द्वारा अपने चुनाव प्रचार अभियान व अन्य तैयारियों पर खर्च किया जाता है। भले ही चुनाव आयोग द्वारा प्रत्येक प्रत्याशी के चुनाव खर्च की सीमा 15 लाख तय की गई हो लेकिन प्रत्याशी कई—कई करोड़ रुपए खर्च करते हैं यह सत्य सभी जानते हैं।
सवाल सिर्फ यह नहीं है कि यह चुनावी धन के इस अत्यधिक प्रयोग की सीमा कहां जाकर रुकेगी, सवाल यह है कि इस अपव्यय को कैसे रोका जा सकता है। तथा हर एक वोटर वोट डालने जाए यह कैसे सुनिश्चित किया जाए? मतदान का औसत प्रतिशत तीन चार दशक से 55—60 फीसदी के बीच ही अटका है और चुनावी खर्च 500 फीसदी बढ़ गया। पहले एक मतदाता पर एक चवन्नी खर्च आया था अब 1 हजार हो गया। यह स्थिति राजनीति में बढ़ते धनबल के प्रयोग को समझने के लिए काफी है। इन दिनों शादियों का सीजन है उत्तराखंड में 18 अप्रैल को कल बड़ी संख्या में शादी थी जिसके कारण बड़ी संख्या में आज लोग अपना वोट नहीं डाल सके। लेकिन चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम में इसका कोई ख्याल नहीं रखा गया।

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