प्रदेश में ध्रुवीकरण की राजनीति शुरू

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भाजपा के ट्वीट में कांग्रेस पर निशाना
सरकार किसकी, फैसला जनता ही करेगी

देहरादून। उत्तराखंड में जैसे—जैसे मतदान की तारीख नजदीक आती जा रही है वैसे—वैसे वोटों के धु्रवीकरण की राजनीति भी जोर पकड़ती दिख रही है। उत्तराखंड भाजपा के ट्विटर हैंडल पर नजर आ रही इन दो ट्वीट के जरिए इसे आसानी से समझा जा सकता है।
उत्तराखंड के लोगों को क्या चाहिए? संस्कृति विश्वविघालय या फिर मुस्लिम यूनिवर्सिटी। मस्जिद और मौलवियों को बढ़ावा देने वाली कांग्रेस सरकार या फिर केदारधाम का विकास करने वाली भाजपा की सरकार? फैसला जनता स्वयं करें। भाजपा के इन दोनों ट्वीट के जरिए कांग्रेस पर निशाना साधते हुए यह संदेश दिया गया है कि कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही है। भाजपा ने अपने इन ट्वीट में जो कहा गया है कि फैसला जनता को स्वयं करना है। तो इसमें कोई संदेह नहीं है फैसला तो जनता ही करेगी लेकिन जाति और धर्म तथा आस्था और आस्था लाइव के आधार पर फैसला किया जाना क्या तुष्टीकरण की राजनीति नहीं है? अगर है तो इस तरह के प्रयास कम से कम देवभूमि की राजनीति के लिए हितकर नहीं कहे जा सकते हैं।
असल में चुनावी दौर में इसकी शुरुआत सहसपुर क्षेत्र से कांग्रेस के बागी प्रत्याशी द्वारा नामांकन पत्र वापसी के लिए रखी गई मुस्लिम यूनिवर्सिटी की शर्त से शुरू हुई जिसमें कांग्रेस के बड़े नेताओं से वार्ता होने का हवाला दिया गया था। जहां तक बात केदार पूरी के विकास की बात है इस मुद्दे पर कांग्रेस और भाजपा के अपने—अपने दावे है।ं किसने कितने विकास कार्य किए यह अलग बात है लेकिन विकास दोनों के कार्यकाल में हुए। लड़ाई अब चुनावी दौर में श्रेय की है लेकिन राजनीतिक दल इसे चार धामों के विकास कार्यों और मस्जिदों और मौलवियों के विकास या संस्कृति विश्वविघालय और मुस्लिम यूनिवर्सिटी के साथ जिस तरह से पेश किया जा रहा है वह धु्रवीकरण की राजनीति है जिसकी शुरुआत अब प्रदेश में हो चुकी है।
उत्तराखंड कोई उत्तर प्रदेश नहीं है जहां मुस्लिम मतदाताओं की तादाद सत्ता के समीकरण उलट—पुलट कर सकती हो। चंद सीटों पर इसका प्रभाव हो सकता है लेकिन किसी धर्म विशेष या समुदाय विशेष के वोटों के लिए जिस तरह के धु्रवीकरण के प्रयास किए जा रहे हैं उनका कोई बहुत बड़ा फर्क सूबे की राजनीति पर पड़ने वाला नहीं है।

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