पीएमओ से लेकर सीएमओ तक एक्शन में
दिनों दिन चौड़ी होती दरारें डरा रही हैं
सरकार को नहीं सूझ रहा है समाधान का रास्ता
देहरादून/चमोली/जोशीमठ। उत्तराखंड के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के ढाई हजार साल पुराने शहर जोशीमठ का अस्तित्व खतरे में है। लगातार हो रहे भू—धसाव से भवनों की दीवारें दरक रही है लोगों की जान खतरे में है और वह भीषण सर्दी में घरों को छोड़कर भागने को मजबूर हैं। शहर पर आए इस संकट को लेकर पीएमओ से लेकर सीएमओ तक चिंतन मंथन जारी है लेकिन न तो इसका कारण कोई अब तक खोजा जा सका है और न इस के समाधान का कोई रास्ता किसी को नजर आ रहा है।
निजी मकानों, होटलों, सामुदायिक भवनों से लेकर ऐतिहासिक ज्योर्तिमठ तक इस भू—धसाव की जद में आ चुके हैं। पांच सौ से अधिक भवनों में आई इन दरारों को लेकर स्थानीय लोगों में भारी दहशत है यहां तक की भटवाड़ी गांव के पास बदरीनाथ हाईवे का एक बड़ा हिस्सा भी इस भू—धसाव की जद में आ गया है। जिसमें बड़ी—बड़ी दरारें पड़ गई हैं। जो लगातार चौड़ी और चौड़ी होती जा रही है शहर के कई हिस्सों में धरती को फाड़ कर गदला पानी तेजी से बाहर निकल रहा है और लोगों के घरों में घुस रहा है। प्रशासन ने अब तक 60 से अधिक परिवारों को नगर पालिका परिसर व गुरुद्वारा तथा मठ—मंदिरों में शरण दी है।
अब आपदा प्रबंधन सचिव जोशीमठ का दौरा कर स्थिति की गंभीरता समझने में जुटे हुए हैं एक्सपर्ट भू वैज्ञानिकों की टीम को जोशीमठ भेजा जा रहा है। स्वयं सीएम धामी आज शाम को हाई लेवल मीटिंग करने जा रहे हैं। कल वह ग्राउंड जीरो पर जाकर स्थिति का जायजा लेंगे। आपदा प्रबंधन को हाई अलर्ट पर रखा गया है। जोशीमठ में आपदा प्रबंधन के लिए कंट्रोल रूम बनाया जा चुका है। प्रभावित परिवारों का डाटा तैयार किया जा रहा है तथा इस आपदा के समय उन्हें कहां सुरक्षित रखा जा सकता है इस पर भी मंथन चल रहा है। उधर पीएमओ भी इस घटना की जानकारी मिलने के बाद एक्शन में है तथा पल—पल का अपडेट लिया जा रहा है लेकिन सवाल यह है कि जोशीमठ शहर के अस्तित्व पर जो खतरा मंडरा रहा है उससे उसे कैसे बचाया जा सकता है? क्या चिंतन मंथन और बैठकों से इस समस्या का समाधान मिल सकेगा? यह बड़ा सवाल है।
तपोवन की विष्णु गाड जैसी लगभग दर्जनभर छोटी परियोजनाएं क्षेत्र में गतिमान है। जिन्हें लोग इस समस्या के लिए जिम्मेदार मान रहे हैं। वही इतने पुराने इस शहर में अनियंत्रित और अनियोजित निर्माण को दूसरी वजह मानते हैं खास बात यह है कि बीते समय में किसी भी सरकार ने यह नहीं सोचा कि बिना किसी डेनेज और सीवर सिस्टम के यह शहर कैसे विस्तार पा रहा है और इसके क्या परिणाम होंगे। अब जब खतरा सर पर सवार हो चुका है तो हड़कंप मचा है। पर समाधान कुछ नहीं है जैसे हालात है ऐसे में लोगों की जान की सुरक्षा ही प्राथमिकता पर आ गई है, शहर को बचाना नहीं।