प्रेमचंद का इस्तीफा

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संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने पद से इस्तीफा दे ही दिया। उनके इस्तीफे से यह विवाद समाप्त हो जाएगा यह संभव नहीं है। उनका इस्तीफा भी अपने पीछे कई ऐसे सवाल छोड़ गया है जो उन सभी लोगों के मन को मथते रहेंगे जो उत्तराखंड के स्वाभिमान व उत्तराखंडियत की रक्षा को लेकर आंदोलन छेड़े हुए थे। बजट सत्र के दौरान प्रेमचंद के मुंह से निकला एक आपत्तिजनक बयान क्या इतना अक्षम्य अपराध था जिसे माफ नहीं किया जा सकता था? जबकि उन्होने अपनी इस गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली गई थी। इससे पहले पूर्व विधायक चैंपियन जिनका एक वीडियो वायरल हुआ था जो अत्यंत ही आपत्तिजनक था लेकिन वह आज भी भाजपा में बने हुए हैं। उनके खिलाफ किसी ने कभी इस तरह का विरोध प्रदर्शन और आंदोलन क्यों नहीं किया? क्या तब किसी भी उत्तराखंडी की भावनाएं आहत नहीं हुई थी। एक दूसरा सवाल यह भी है क्या प्रेमचंद अग्रवाल ने राज्य आंदोलन की लड़ाई नहीं लड़ी थी? जिसका जिक्र वह करते हुए कल पत्रकार वार्ता में रो पड़े थे। उनका यह कहना कि मुझे सबसे अधिक दुख इस बात का है कि मुझे यह साबित करना पड़ रहा है कि मैं भी उत्तराखंडी हूं। तीसरी और सबसे अहम बात यह है कि क्या प्रेमचंद के इस्तीफे से देसी और पहाड़ी का मुद्दा यहीं खत्म हो जाएगा जो इस मुद्दे की जड़ रहा है। प्रेमचंद को मंत्री पद से हटाने की मांग करने वाले और अब उनके इस्तीफे को उत्तराखंडियत की जीत बताकर जश्न मानने वालों को इन सवालों पर भी गौर करने की जरूरत है। प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने पद से इस्तीफा जरूर दिया है लेकिन उन्होंने न तो भाजपा को छोड़ा है न विधायकी को छोड़ा है न ही राजनीति से संन्यास लिया है। प्रेमचंद अग्रवाल खुद यह भी कह चुके हैं कि वह यही जियेगें और यही मरेंगे। वह उत्तराखंडी है और उत्तराखंडी ही रहेंगे। रही बात प्रेमचंद अग्रवाल के राजनीतिक कैरियर की तो इसे समझने के लिए यह काफी है कि वह चार बार के विधायक है तथा उस वैश्य समाज से आते हैं जिसमें उनकी मजबूत पकड़ और जनाधार है। तथा वह भाजपा के मंत्रिमंडल में इकलौते वैश्य समाज से मंत्री थे। इस पूरे प्रकरण से जितने भी मुद्दे जुड़े हैं अग्रवाल कहीं से भी कमजोर दिखाई नहीं देते हैं। इस विवाद के बाद भी उन्हें केंद्रीय समिति में सदस्य बनाया जाना यह बताता है कि संघ और भाजपा में उनकी पकड़ कितनी मजबूत है। यह जरूर माना जा सकता है कि उन्हें अपनी एक छोटी सी गलती की बड़ी सजा भुगतान पड़ी है। जो उनके लिए भी एक बड़ा सबक है। आक्रोश और क्रोध अगर हावी नहीं होता तो शायद वह ऐसी गलती नहीं करते। सत्र के दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि पहाड़ पर रहने वाले सभी लोगों के पूर्वज पहाड़ पर नहीं रहते थे। पहाड़ पर देश के कोने—कोने से आकर लोग बसे हैं और जो लंबे समय से पीढ़ियों से पहाड़ पर रह रहा है वह सभी उत्तराखंडी है पहाड़ी है। उनकी इस बात को अब मंत्रिमंडल के अन्य सदस्यों से लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत तक कह रहे हैं। देखना यह है कि अब अग्रवाल के इस्तीफे से देसी और पहाड़ी की राजनीतिक जंग किस तरह का रंग लेती है।

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