रजत जयंती वर्ष का बजट

0
350


पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड सरकार ने अपने रजत जयंती वर्ष का बजट पेश करते हुए बजट का आकार 1 लाख करोड़ के पार पहुंचाकर राज्य के सतत विकास की इच्छा शक्ति दिखाया जाना अच्छी बात है लेकिन 25 साल के इस राज्य को अपनी उन गंभीर चुनौतियां को ध्यान में रखने की जरूरत है। जिससे राज्य का विकास प्रभावित हो रहा है। भले ही वित्त मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने अपने इस बजट को व्यथात्मक भाषा श्ौली और सात प्रमुख बिंदुओं तथा नमो की अवधारणा और शासन के फार्मूले के जरिए इसे अति आकर्षित बनाने का प्रयास किया गया हो लेकिन किसी बात को कहना और उसे जमीन पर उतारा जाना अलग—अलग बातें है। कृषि, ऊर्जा उघोग कनेक्टिविटी, इंफ्रास्ट्रक्चर, पर्यटन तथा आयुष यह सभी सात क्षेत्र राज्य के विकास में अहम भूमिका निभाने वाले हैं। वही नवाचार, आत्मनिर्भरता और विरासत तथा मानवीय संसाधनों में प्रगति भी महत्वपूर्ण पहलू है लेकिन हम जमीनी हकीकत को नजर अंदाज करके आगे नहीं बढ़ सकते हैं। बात अगर अन्नदाता (किसान) की हो जिनकी आय दोगुना करने की बात लंबे समय से करते आ रहे हैं क्या इसे जमीन पर उतारा जा सका है? राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक 25 सालों में उत्तराखंड की कृषि जमीन 26 फीसदी कम हो गई है। नगरीय क्षेत्र के आसपास की जमीनों को भू माफिया कब्जा कर चुके हैं तथा पलायन के कारण छोटी जोत वाली जमीन बंजर हो गई है। उत्तराखंड में वैसे भी कृषि भूमि ऊंट के मुंह में जीरा के समान थी 71 फीसदी वन क्षेत्र के कारण कृषि के लिए बचता ही क्या था। वह भी अगर खुर्द बुर्द हो रही है तो फिर किसानों और उनके हितों की बात के क्या मायने रह जाते हैं। राज्य सरकार अपने कुल बजट का एक तिहाई हिस्सा वैसे भी कर्मचारियों के वेतन भत्तों और पेंशनों पर खर्च कर देती है। इसमें तो कोई शक नहीं है कि अलग राज्य बनने के बाद इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए बहुत कुछ किया गया है लेकिन इसमें उत्तराखंड का कितना योगदान रहा यह विचारणीय है। राज्य के ढांचेगत विकास में केंद्र सरकार अहम भूमिका निभा रही है। आज जिन चौड़ी—चौड़ी सड़कों और रेल परियोजनाओं से लेकर केदारनाथ और हेमकुंड साहिब में कई बड़े रोपवे बनाने के साथ 37 पूलों के निर्माण और एयर कनेक्टिविटी बसने की बात अगर वित्त मंत्री अग्रवाल कर पा रहे हैं तो यह उत्तराखंड सरकार की नहीं है केंद्र सरकार की मेहरबानियोंं का ही परिणाम है। राज्य में 25 साल में जो औघोगिक विकास अपेक्षित था तथा शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में जो काम किया जाना जरूरी था वह किया गया है होता तो निश्चित तौर पर राज्य की दिशा और दशा में हम एक बड़ा बदलाव ला सकते थे। 25 साल बाद भी अगर पहाड़ से पलायन हो रहा है गांव मानस विहीन हो रहे हैं जमीनें बंजर हो रही है शिक्षा और स्वास्थ्य की सेवाएं बदहाल है तो बजट के 1 लाख करोड़ के पार होने का कोई मतलब नहीं है। राज्य बनने के बाद पर्यटन के क्षेत्र में जरूर विकास की नई संभावनाओं को नई उम्मीदों के तौर पर देखा जा सकता है राज्य गठन के 25 साल बाद अगर उत्तराखंड राज्य ऊर्जा प्रदेश में आत्मनिर्भर ही बन सका है तो क्यों? यह बात एक सवाल है। राज्य में कुटीर उघोगों के जरिए भी विकास के नए रास्ते बनाए जा सकते हैं। इसमें कोई संशय की बात नहीं है कि योग और आध्यात्मिक की इस धरती पर विकास की तमाम संभावनाएं मौजूद हैं। ऊर्जा, पर्यटन, योग और धार्मिक पर्यटन के साथ—साथ आयुष और ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जा सकता है लेकिन अब तक की सरकारें हमेशा उतने से खुश और संतुष्ट रही है जितना कुछ हो चुका है। आत्मनिर्भरता और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने के आंकड़ों तथा नीति आयोग द्वारा तय की जाने वाली रैंकिंग ही राज्य सरकार के लिए संतुष्टी का विषय है। बजट का आकार तो हर साल बढ़ता ही जाएगा भले ही बजटीय घाटे का अनुमान न लगाया जाए या उसे पूरा करने के कुछ भी जुगाड़ करना पड़े।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here