वाह!वाही वाला बजट

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वैसे तो बजट को किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का पैरामीटर कहा जाता है लेकिन हर साल अपनी आय—व्यय का ब्यौरा समझाने वाले आम बजट को आम आदमी इससे ज्यादा कुछ नहीं समझ पाता है कि बजट के बाद क्या कुछ सस्ता होगा और क्या—क्या वस्तुएं महंगी होंगी। वास्तविकता के धरातल पर अगर देखा जाए तो यह भी सिर्फ एक मिथक ही है। इसका सच अगर आप परखना चाहते हैं तो पिछले 5—10 सालों के बाजार भावों पर गौर करके देख लीजिए कितनी वस्तुओं या सेवाओं की कीमतों में कमी आई है। सही मायने में बजट आंकड़ों की एक ऐसी कारीगरी के सिवाय कुछ नहीं जिसे अच्छे से अच्छा गणितिज्ञ और अर्थशास्त्री भी समझने में गच्चा खा जाते हैं। वित्त मंत्री सीतारमण ने एक फरवरी को एक बार फिर देश का जो आम बजट पेश किया गया उसमें 12 लाख सालाना तक कमाने वालों को आयकर टैक्स से मुक्त रखने की घोषणा की गई है। उन्होंने जब संसद में 12 लाख तक आय करने वालों को आयकर के दायरे से बाहर रखने की घोषणा की तो सभी मेज पीट कर इसका जश्न मनाते दिखे। वास्तव में बात खुश होने वाली ही थी क्योंकि इतनी बड़ी छूट का किसी को अनुमान ही नहीं था पहले यह सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर 5 लाख और 7 लाख की गई थी लेकिन एक साथ 7 लाख से बढ़ाकर 12 लाख कर दी जाएगी किसी को इसकी उम्मीद नहीं थी जब आयकर छूट 7 लाख पर शून्य थी तब 15 लाख लोग टैक्स के दायरे में आते थे और जब 12 लाख कर दी गई तब 2 लाख लोगों को टैक्स के दायरे से बाहर होने का लाभ मिल रहा है। लेकिन इसका शोर इतना ज्यादा हो रहा है जैसे इस आयकर सीमा छूट से मिडिल क्लास में गिने जाने वाले 42 से 44 करोड़ लोगों को कोई बहुत बड़ा तोहफा मिल गया हो और उनकी सारी समस्याओं का समाधान हो गया हो। 7 लाख कमाने वाले तो पहले से शून्य आयकर के दायरे में थे। देश में कितने लोग हैं जो 12 लाख साल कमाते हैं? अगर छूट का दो करोड़ लोगों को फायदा होगा भी जिसे 80 हजार रूपये साल बताया जा रहा है तो इससे उनकी क्रय क्षमता कितनी बढ़ जाएगी और क्या वह बाजार में कोई बूम पैदा कर देंगे जिससे अर्थव्यवस्था फिर से सरपट दौड़ने लगेगी। सही मायने में बजट का मतलब होता है वह हिसाब—किताब जिसके जरिए सरकारें यह बताती है उसके पास कहां से कितना पैसा आएगा और उसे वह कहां खर्च करेगी? वित्त मंत्री ने 50 लाख 65 हजार करोड़ का जो बजट पेश किया उसमें यह बताया गया है कि सरकार को टैक्स से 28 लाख करोड़ और नॉन टैक्स से होने वाली आय से 5.84 लाख करोड़ की आय होगी तथा 15 लाख करोड़ का इंतजाम कर्ज आदि से करना पड़ेगा। वर्तमान समय में सरकार के सर पर 196 लाख करोड़ का कर्ज है। जो निरंतर बढ़ता जा रहा है। इसका सीधा मतलब है कि सरकार जितना बजट पर खर्च करेगी उसे चार गुना ज्यादा कर्ज सरकार पर है। रही बात टैक्स बढ़ाने की तो पहले से देश की आम जनता महंगाई और तमाम टैक्सों के बोझ तले पिस रही है फिर भी सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था के टनाटन होने और सरपट दौड़ने की बात कही जा रही है। नौकरियां है नहीं बेरोजगारी अपने चरम पर है ऊपर से महंगाई ने आम आदमी का जीना मुहाल कर रखा है। बजट की खास बात यह है कि सरकार को निजी क्षेत्र से जो टैक्स मिलेगा 12.6 लाख करोड़ होगा तथा कारपोरेट से जो टैक्स मिलेगा 9.8 लाख करोड़ होगा यानि टैक्स आम आदमी ही अधिक देगा कॉर्पाेरेट कम देगा जबकि देश की आय व परिसंपत्तियों पर कॉर्पाेरेट का 40 फीसदी पर कब्जा है। गरीब—अमीर के बीच की खाई निरंतर बढ़ रही है महंगाई व बेरोजगारी को रोक पाना बजट के बस की बात नहीं है तब इस बजट को क्या कहें खुद ही सोच लेना।

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