जनांदोलन का उद्घोष

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कांग्रेस ने अब इस बात को अच्छी तरह से समझ लिया है कि वह भाजपा से तब तक किसी भी तरह नहीं जीत सकती है जब तक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर रहेंगे और उन्हें कुर्सी से हटाने में सिर्फ देश की जनता ही मदद कर सकती है। नई दिल्ली में कल सीडब्ल्यूसी की मैराथन बैठक के बाद अब कांग्रेस ने इस बात का उद्घोष कर दिया है कि वह बहुत जल्द राष्ट्रव्यापी स्तर पर एक जनांदोलन शुरू करने जा रही है। तथा इस आंदोलन में उसके साथ उसके सहयोगी दल भी आए या न आए वह एकला चलो की स्थिति में भी अपने कदम पीछे नहीं खींचेगी। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि वह हरियाणा और महाराष्ट्र की हार से निराश नहीं है क्योंकि इन्हीं चुनावी नतीजे से यह राह आसान हुई है कि जब वह अपनी बात जनता को आसानी से समझा पाएंगे। कांग्रेस लोकसभा और चार राज्यों के चुनावों में जिन मुद्दों को लेकर आगे बढ़ी है उन्ही मुद्दों पर अडिग रहेगी क्योंकि इन मुद्दों पर ही उसे जनस्वीकार्यता मिली है और लोगों को पता चला है कि भाजपा ने कांग्रेस को कैसे हराया है। राहुल गांधी की पदयात्राओं में जनता के बीच जाकर उनके ही मुद्दों की बात करने का ही नतीजा है कि भाजपा अब देश को कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की बात करना तक भूल चुकी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव और चार राज्यों के चुनावों के बाद भाजपा नेताओं को इस बात का एहसास हो चुका है कि देश की जनता को अब वह है स्वीकार्य नहीं रहे हैं और डराने धमकाने तथा धर्म और जाति के आधार पर लड़ाने की राजनीति के जरिए अब लंबे समय तक सत्ता पर काबिज नहीं रह सकते हैं। और न अपने कांग्रेस मुक्त भारत तथा क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व को समाप्त कर सकते हैं। संवैधानिक संस्थाओं का उपयोग भी अपने लिए वह स्थाई तौर पर सत्ता में बने रहने के लिए नहीं कर सकेंगे? महाराष्ट्र के नतीजो के बाद मुकुल वासनिक सहित चार लोगों ने चुनाव आयोग को खत लिखकर अब खुली चुनौती दी है कि वह उन्हें मिलने का समय दे वह मुख्य चुनाव आयुक्त को बताएंगे कि उन्होंने कैसे गलत तरीके से भाजपा को हरियाणा व महाराष्ट्र में जिताया है अगर वह हमारे सवालों का जवाब दे पाए तो यह तो हम ही नहीं पूरा देश मान लेगा कि आपने निष्पक्ष चुनाव कराया है। लेकिन इस बात की संभावना बहुत कम है कि राजीव कुमार उनकी इस चुनौती को स्वीकार करेंगे और उन्हें खुली बहस का मौका देंगे। भले ही कल कांग्रेस ने संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अब जनांदोलन की घोषणा की हो लेकिन यह जनांदोलन चार दिन पूर्व पुणे से समाजसेवी 84 वर्षीय बाबा ऑडव पहले ही शुरू कर चुके हैं। बाबा आडव ने देश की वर्तमान राजनीति पर तीखी टिप्पणी करते हुए 2019 के लोकसभा चुनाव से अब तक तमाम घटनाओं का जिक्र करते हुए इसे लोकतंत्र का चीर हरण कहा गया है। इस बात को देश का हर आम आदमी महसूस कर रहा है कि 2014 के बाद बीते एक दशक में देश की राजनीति का चेहरा मोहरा पूरी तरह से बदल चुका है तथा राजनीति का अर्थ केवल और केवल येन केन प्राकरेण सिर्फ चुनाव जीतना और सत्ता में बने रहना ही हो चुका है इस प्रक्रिया में सत्ताधारी दल द्वारा संवैधानिक व्यवस्थाओं और नियम कानूनों की धज्जियां उड़ा दी गई है मीडिया और चुनाव आयोग से लेकर सीबीआई और ईडी तक इस्तेमाल एक सत्ता प्राप्ति के टूल की तरह किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में लोकतंत्र और संविधान की बात बेमानी हो चली है। अब देखना यह है कि इन चुनाव व्यवस्थाओं को पुर्न जीवित और जागृत करने में कितना समय लगता है। लेकिन इस देश की आम जनता ही इसे आसानी से कर सकती है इसमें कोई संदेह नहीं है।

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