अभी महाराष्ट्र के बदलापुर की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया था कि बेटियों के दोषियों को किसी भी कीमत पर बक्शा नहीं जाएगा चाहे कोई कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो अभी बीते दिनों प. बंगाल की राजधानी कोलकाता में एक रेजिडेंट महिला डॉक्टर के साथ रेप और उसकी नृशंस हत्या तथा उत्तराखंड के रुद्रपुर की एक महिला नर्स के साथ रेप और हत्या के मामलों को लेकर आंदोलनो का दौर जारी है। इसी बीच बदलापुर (महाराष्ट्र) में 4 साल की दो मासूम बच्चियों के साथ हुई दरिंदगी की घटना से एक बार फिर से महिलाओं की सुरक्षा के सवाल पर देश की जनता को तो झकझोर कर रख दिया है वहीं सरकार पर भी तमाम सवाल उठाए जा रहे हैं। सरकार द्वारा बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ के नारों की बात हो या फिर नारी वंदन जैसे उन आरक्षण कानून की जिनके जरिए बेटियों और महिलाओं को सक्षम और सशक्त बनाने की बात कही जाती है। एक खास बात यह है कि मणिपुर जैसी वीभत्स घटनाओं पर चुप्पी साधने और कोलकाता की घटना को लेकर इतना हंगामा की बात राज्य सरकार की बर्खास्ती की और राष्ट्रपति शासन लागू करने की क्यों? एक अन्य सवाल यह भी है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सरकारों द्वारा किया क्या जा रहा है। उत्तर प्रदेश में अभी चंद दिन पूर्व एक दलित नाबालिक से रेप के आरोपी सपा नेता के भवनों पर बुलडोजर की कार्यवाही की गई थी लेकिन इसके बावजूद भी फर्रुखाबाद में श्री कृष्ण जन्माष्टमी की रात दो लड़कियों के मंदिर से लौटते समय गायब हो जाने और अगली सुबह उनके शव एक बाग में फांसी के फंदे पर लटके मिलने की घटना का सामने आना और बुलंदशहर के अनूप शहर में एक महिला डॉक्टर को नशीला पदार्थ देकर उसके साथ दुष्कर्म किया जाना हैरान करने वाली घटनाएं हैं। दरअसल दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि शासन—प्रशासन जो महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा में विफल साबित हो रहा है उसमें किसी तरह के सुधार की कोशिश किये जाने के बजाय इन महिला अत्याचारों और यौन शोषणों की घटनाओं पर राजनीति अधिक की जा रही है। दो साल पहले उत्तराखंड में हुए अंकिता भंडारी हत्याकांड को लेकर अभी तक आंदोलन हो रहे हैं लेकिन उसे इंसाफ कब मिलेगा इसका जवाब किसी के पास नहीं है। प. बंगाल में महिला डॉक्टर के रेप और हत्या की बात हो या फिर बदलापुर में दो मासूमों से स्कूल में हुई यह घटनाएं बताती है महिला व बच्चियंा न स्कूल में सुरक्षित है न कार्य स्थलों पर। अभी बीते दिनों देश में पदक विजेताओं द्वारा जब केंद्रीय नेता बृजभूषण पर यौन शोषण के आरोप लगाये गये थे तो उस पर सरकार की जो खामोशी देखी गई वह सब हैरान करती है। महिलाओं की सुरक्षा की बात और दावे करना बहुत आसान काम है और ऐसे मामलों पर राजनीति करना उससे भी ज्यादा आसान है और बीते सालों में महिला अत्याचारों में हुई बढ़ोतरी का कारण भी यही है। लेकिन सामाजिक सुरक्षा का यह सवाल अब इतना बड़ा हो चला है कि देश की जनता इसे लेकर न सिर्फ आरोपियों को बल्कि सरकारों को भी सबक सिखाने को मजबूर है। आने वाले चुनावों में सत्ता में बैठे लोगों को भी इसका खामियाजा भुताने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि अब महिला उत्पीड़न व हिंसा की वारदातें समाज के बर्दाश्त से बाहर होती जा रही है।