राजनीति का बदलता परिदृश्य

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लोकसभा चुनावों के बाद देश की राजनीति का परिदृश्य जिस तरह से बदला है इसका आकलन करने में अच्छे से अच्छे राजनीतिक विशेषज्ञ भी फेल साबित हुए हैं। चुनाव से पूर्व भले ही विपक्षी एकता के प्रयास किए गए थे लेकिन नीतीश कुमार के पलटी मारते ही यह मान लिया गया था कि अवसरवादी नेताओं को न कोई पूछेगा और न उन पर भरोसा ही करेगा। यही कारण था कि भाजपा नेताओं ने भी इस गठबंधन को कतई गंभीरता से नहीं लिया। नीतीश के जाने के बाद भी जिस तरह से ममता बनर्जी से लेकर अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव तक सभी नेता अपनी अपनी ढाई चावल की खिचड़ी पकाते दिख रहे थे व सभी दल प्रत्याशी चयन और अन्य दूसरी तैयारी में जुटे थे तब राहुल गांधी अपनी दूसरी भारत न्याय यात्रा पर थे। जिसका मजाक प्रशांत किशोर जैसे लोगों द्वारा बनाया जा रहा था। एक अकेले राहुल गांधी और उनकी पार्टी के बुजुर्गवार सिपहसलार खड़गे ही थे जो कांग्रेस की और से देश की लड़ाई लड़ रहे थे। लेकिन उनके द्वारा यह लड़ाई बिना मजबूत संगठन व धन के अभाव में भी कैसे लड़ी गई इसका जवाब 4 जून के नतीजों से सबको मिल चुका है। इस चुनाव में अगर किसी ने कुछ कमाल करके दिखाया है तो राहुल गांधी व अखिलेश यादव ने किया जब उत्तर प्रदेश में भाजपा को आधी सीटों पर भी नहीं जीतने दिया गया। इस चुनाव में यह पहली बार देखा गया है कि जब कोई गठबंधन चुनावी नतीजों के बाद मजबूती से एक साथ खड़ा हुआ हो वह भी विपक्ष में बैठने के लिए, ऐसा पहले कभी इस देश की राजनीति में कभी नहीं हुआ है सत्ता के साथ तो आने वालों और सौदेबाजी करने वालों की सदैव बहुतायत रही है। एक अन्य खास बात यह है कि विपक्ष वर्तमान में मोदी सरकार को कदाचित भी गिराना नहीं चाहती है और न उसकी कोई ऐसी मश्ंाा है कि वह नीतीश और चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं के साथ मिलकर अपनी सरकार बनाएं। वर्तमान सरकार जिसके बारे में यह कहा जा रहा है कि यह तो अपने ही बोझ से एक दिन भरभरा कर गिर जाएगी अगर ऐसा हुआ भी तब भी कांग्रेस या इंडिया गठबंधन अपनी सरकार बनाने की इच्छा नहीं रखता है यह देश की राजनीति का वर्तमान व बदला हुआ परिदृष्य ही है। जब विपक्ष सरकार बनाने की स्थिति में होते हुए भी चुनाव में जाना ज्यादा बेहतर समझेगा। एक अन्य और महत्वपूर्ण बात यह है कि जो लोग व नेता बीते समय में कांग्रेस का साथ छोड़कर चले गए हैं उन्हें अब कांग्रेस में वापस नहीं लिया जाएगा। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद कांग्रेस में वापसी का प्रयास करने वालों को अब यह है उम्मीद छोड़ देनी चाहिए कि उन्हें कांग्रेस में वापसी का मौका मिल सकता है। निश्चित तौर पर ऐसा भी इस देश की राजनीति में पहले न कभी हुआ है और न शायद आगे होगा। लेकिन कांग्रेस यह फैसला कर चुकी है कि जो साथ छोड़कर भाग गए थे उनकी अब वापसी नहीं होगी। कांग्रेस के इस फैसले का भाजपा और उन नेताओं पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा जो बीते 10 सालों में भाजपा की नीतियों के शिकार हुए हैं। देश की राजनीति के परिदृश्य में कुछ बड़े बदलाव हो चले हैं और अभी कुछ होना बाकी है।

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