लोकतंत्र और चुनाव

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क्या वर्तमान लोकसभा चुनाव मैच फिक्सिंग का चुनाव है यह सवाल हम नहीं उठा रहे हैं। सात चरणों में होने वाले इस लोकसभा चुनाव के लिए 19 अप्रैल को प्रथम चरण की 101 लोकसभा सीटों के लिए मतदान होना है लेकिन महीनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले के प्राचीन से अपने तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की घोषणा कर चुके हैं। यही नहीं उन्होंने बहुत पहले यह भी बता दिया है कि इस बार 400 से अधिक सीटें उनके गठबंधन को मिलेगी और भाजपा को 370 से अधिक सीटों पर जीत मिलेगी। बीते कल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह जो जौनसार बाबर क्षेत्र में चुनावी दौरे पर थे जहां उन्होंने कहा कि वर्तमान लोकसभा चुनाव देश का पहला ऐसा चुनाव है जिसका चुनाव परिणाम पहले से ही सभी को पता है। अगर देश के प्रधानमंत्री और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को चुनाव से पहले ही चुनाव परिणाम का पता है तो फिर बीते कल दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष के नेताओं द्वारा इस चुनाव को मैच फिक्सिंग का चुनाव होने के जो आरोप लगाए गए हैं उन्हें भी बुनियाद नहीं कहा जा सकता है। देश के संसदीय इतिहास में तमाम चुनाव ऐसे हुए हैं जिनके परिणाम चौंकाने वाले रहे हैं। 1970 के दशक में इमरजेंसी के बाद होने वाले दो लोकसभा चुनाव जिनमें कांग्रेस को एक चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था और दूसरे चुनाव में उसे प्रचंड जीत मिली थी इसका उदाहरण है। 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी जब इंडिया साइनिंग के बैनर पोस्टर और होल्डिंग से पूरा देश पटा हुआ था चुनाव परिणाम ने राजनीतिक दल और नेताओं को चौंका दिया था। अगर किसी देश में चुनाव परिणाम पहले ही घोषित कर दिए जाए इसका सीधा—सीधा मतलब है कि उसे देश में लोकतंत्र है ही नहीं। निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया के बिना लोकतंत्र का जीवन संभव नहीं है भले ही इस सत्य को कोई राजनीतिक दल और उसके नेता स्वीकार करें या न करें। अभी एक बहुत ही छोटे से चुनाव के दौरान घटित हुई एक छोटी घटना को लेकर विवाद इतना बड़ा हो गया था कि मामला देश की सर्वाेच्च अदालत तक पहुंच गया था। चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में हुई धांधली पर सुप्रीम कोर्ट की वह टिप्पणी जिसमें कहा गया था कि यह तो लोकतंत्र की हत्या है। यह बताने के लिए काफी है कि लोकतंत्र में चुनाव की क्या महत्ता है कल लोकसभा चुनाव के महासंग्राम में दो बड़ी रैलियां की गई। जिसमें एक रैली प्रधानमंत्री द्वारा मेरठ में की गई वहीं दूसरी रैली दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई जिसमें इंडिया गठबंधन के सभी दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इंडिया गठबंधन की इस रैली में बोलने वाले 16 नेताओं द्वारा महंगाई बेरोजगारी जैसे मुद्दों के साथ—साथ तमाम संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग का मुद्दा जोर—जोर से उठाया गया और देश के लोगों को इसे लेकर सतर्क किया गया कि सत्ता में बैठे लोग किस तरह से लोकसभा चुनाव में मैच फिक्सिंग कर चुके हैं और अगर उन्होंने 2024 के इस चुनाव में अपने वोट का सही इस्तेमाल ही नहीं किया तो देश से लोकतंत्र का खत्मा हो जाएगा। पक्ष और विपक्ष अगर चुनाव के दौरान आरोप—प्रत्यारोप न लगाए तो फिर चुनाव ही क्या? लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिखराव के बीच विपक्ष की एकजुटता और उसका जनता के साथ सामाजिक सरोकार के मुद्दे पर जिस तरह से सीधा संवाद चुनाव से पूर्व स्थापित हो चुका है वह सत्ता पक्ष को कड़ी चुनौती देता दिख रहा है भले ही भाजपा के नेता चुनाव से पहले ही परिणाम घोषित कर रहे हो लेकिन 2024 का लोकसभा चुनाव किसी के लिए भी आसान रहने वाला नहीं है।

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