हार के डर के आगे हार है

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देश की 17वीं लोकसभा के लिए होने वाला यह आम चुनाव वास्तव में कोई आम चुनाव नहीं है। इस चुनाव को कोई राजनीतिक दल और नेता नहीं लड़ रहे हैं। इस चुनाव में ईडी, सीबीआई और चुनाव आयोग जैसी स्वायत्तता धारी संस्थाओं से लेकर पाकिस्तान और चीन में बैठी उन कंपनियों की सहभागिता खुले तौर पर सामने आ चुकी है जो चुनावी फंडिंग कर रही हैं। भले ही निर्वाचन आयोग और सत्ताधारी दल के नेताओं द्वारा निष्पक्ष चुनाव कराने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की जा रही हो लेकिन जमीनी हकीकत इससे एकदम अलग है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद जिस तरह से ईडी और सीबीआई के द्वारा विपक्षी नेताओं के खिलाफ कार्यवाही की जा रही है तथा आयकर विभाग द्वारा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सभी खातों को सीज किया गया है उसकी रोशनी में इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि सत्ता पक्ष की मंशा क्या है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके संकेत बीते कई महीनो से अपने उन वक्तव्यों के जरिए देते रहे हैं जिनमें उनके ही तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनने या फिर विपक्ष का सुपड़ा साफ करने या विपक्ष को दर्शक दीर्घा में बैठने वाले बयान शामिल है। लोकतंत्र में कोई भी राजनीतिक दल या नेता अपनी और अपनी पार्टी की जीत का दावा इस तरह भला कैसे कर सकता है कि जीतेगा तो वही। इसे कोई भी प्रधानमंत्री मोदी का आत्मविश्वास नहीं कह सकता है। अगर उनका यह आत्मविश्वास ही होता तो उन्हें और भाजपा की सरकार को वह सब हथकंडे अपनाने तथा किसी के भी साथ गठबंधन करने के लिए तत्पर नहीं देखा जा सकता था। कल ईडी ने दिल्ली के सीएम केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया गया। उससे पहले झारखंड के सीएम सोरेन को जेल भेजा जा चुका है। बीजेपी इन कार्रवाइयों को भ्रष्टाचार पर वार के तौर पर पेश कर रही है लेकिन लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या भ्रष्टाचारी सिर्फ विपक्षी दलों के नेता ही है भाजपा में कोई एक भी भ्रष्टाचारी नहीं है बीते 10 सालों में भ्रष्टाचार में ईडी और सीबीआई ने भाजपा के कितने नेताओं को जेल भेजा है। इन दिनों देश की राजनीति में इलेक्टोरल बांड और पीएम केयर फंड को लेकर सरकार पर कई सवाल उठ रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी की जा रही है। महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दों को लेकर भी विपक्ष हमलावर है। इस सब के बीच लामबंद होता दिख रहा विपक्ष सत्तारूढ़ भाजपा के लिए बड़ा सिर दर्द बना हुआ है। यही कारण है कि अब सत्ता में बैठे नेता जनता का ध्यान भटकाने के लिए नेताओं की गिरफ्तारियां में जैसे काम करा रहे हैं। विपक्षी नेता जिस मजबूती के साथ जनहित के मुद्दों को जनता के सामने रखकर सरकार के झूठे वायदे व दावों की कलई खोल रहे हैं उसने सरकार को इतना असहज कर दिया है कि वह अब शक्ति शब्द जैसे मुद्दों और विपक्ष ने मुझे कितनी बार गालियां दी जैसी बातें अपनी जनसभा में उठाकर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। मंदिर, हिंदुत्व, राष्ट्रवाद और विकसित भारत के मुद्दे अब उनकी जुबान पर नहीं आ पा रहे हैं। अभी तो चुनाव शुरू भी नहीं हुआ है आगे आगे देखिए होता है क्या जाति, धर्म, विकास की और अच्छे बुरे दिनों की बातें पीछे छूट गयी है और नया क्या कुछ सामने आता है इसका अंदाजा भी इस दौर में कोई नहीं लगा सकेगा।

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